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________________ साधक तत्त्व क्या है ? आदि अनेक समाधानों का सागर है - शोधग्रन्थ "प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा" । यह सत्साहित्य परम श्रद्धेय, सृजन के सूत्रधार, अध्यात्मयोगी, लोकमंगल के क्षीरसागर, प्रशमरस महोदधि, ज्ञान के महासागर, वात्सल्य और करूणा के आगार, साहित्य मनीषी-राष्ट्रसन्त श्रीमदविजय जयन म०सा० की आज्ञानुवर्ती एवं तपस्वीरत्ना पू० साध्वी श्री शशिकलाश्रीजी म० सा०की सुशिष्या श्री दर्शनकलाश्रीजी म० के अथक परिश्रम और लगन का सुफल है। विदुषी साध्वी श्री दर्शनकलाश्रीजी उत्तर गुजरात के थराद जिले में बनासकांठा ग्राम के पुण्यशाली श्री चन्दुलाल मफतलाल दोशी के परिवार की पुत्रीरत्ना है । माताश्री सविता बहिन के धार्मिक संस्कारों का सार्थक-प्रतिबिम्ब था पू० दर्शनकलाश्रीजी का बचपन जब उनकी व्यवहारिक शिक्षा की ओर कम तथा धार्मिक प्रशिक्षण पर अधिक जोर दिया गया। प०पू० राष्ट्रसन्त की अध्यात्ममय ओजस्वी वाणी ने वैराग्य के मंगल भावों का प्रस्फुटन किया तथा अल्पायु में ही- मात्र १०वीं तक का व्यवहारिक शिक्षण हांसिल कर वैराग्य पथ पर संयम पथ पर कदम बढ़ा दिए । प्रचूरप्रज्ञा-प्रसूता साध्वीश्री ने अपनी समस्त शिक्षा १२वीं बीए एमए, पीएच. डी. आदि दीक्षित होने के पश्चात् हांसिल की तथा जैन शासन की गुरुगच्छ की प्रभावना करते हुए निरन्तर अध्ययनरत रही । एम.ए. की उपाधि के समय तो आपश्री को 'विशेष योग्यता के कारण स्वर्णपदक भी हांसिल हुआ। आपश्री ने अपना शोध अध्ययन शाजापुर में जैन दर्शन के प्रकाण्ड पण्डित डॉ० सागरमलजी जैन के निर्देशन में तैयार किया तथा जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय ने दिल्ली में आपश्री को राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद के हाथों २० अक्टोबर २००५ को डाक्टरेट (पीएच.डी.) की उपाधि प्रदान की । (मूलतः गुजराती भाषी होने के बावजूद हिन्दी भाषा में रूचि रखकर जो सफलता आपने प्राप्त की है वह वास्तव में प्रशंसनीय है, अभिनन्दनीय है, अनुकरणीय है । इसी तरह कर्मठतापूर्वक आपश्री अपनी पावन प्रज्ञा परक प्रसाति से गुरु गच्छ की प्रभावना करें तथा आपश्री का अत्यन्त चिन्तन परक, उद्बोधक परक सामग्री से आपूर्ण यह ग्रन्थ उपासकों, साधकों, जिज्ञासुओं, अध्ययनार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए अपने दृष्टिकोणानुसार अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो-इसी मंगलकामना के साथ... डॉ. श्रीमती कोकिला भारतीय खाचरौद (म.प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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