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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
चतुर्थ अध्याय........{211} करेगा, उसका काल अनादि-सान्त है । वमित सम्यक्त्व मिथ्यादृष्टि का काल सादि और सान्त है । सासादनसम्यग्दृष्टि का नाना जीवों की अपेक्षा से जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण है, किन्तु एक जीव की अपेक्षा से जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल छः आवलिका है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि का नाना जीवों की अपेक्षा से जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है, किन्तु एक जीव की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । असंयतसम्यग्दृष्टि का काल नाना जीवों की अपेक्षा से सम्पूर्ण काल है, किन्तु एक जीव की अपेक्षा से जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त
और उत्कृष्ट काल साधिक तेंतीस२७४ सागरोपम है । संयतासंयत गुणस्थान का सभी जीवों की अपेक्षा से सर्व काल है, ये सभी कालों में पाए जाते हैं, किन्तु एक जीव की अपेक्षा से जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ कम एक पूर्व कोटि२७५ है । प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत का काल सभी जीवों की अपेक्षा से सर्वकाल है और एक जीव की अपेक्षा जघन्यकाल एक समय२७६
और उत्कष्टकाल अन्तर्महर्त है। चारों उपशमकों का सभी जीवों की अपेक्षा से और एक जीव की अपेक्षा से जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । चारों क्षपक और अयोगी केवली गुणस्थान का सभी जीवों की अपेक्षा से और एक जीव की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही है । सयोगीकेवली गुणस्थान का काल सभी जीवों की अपेक्षा से सर्वकाल है, किन्तु एक जीव की अपेक्षा से जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्टकाल कुछ कम एक पूर्व को
विशेष अपेक्षा से गतिमार्गणा में नरकगति में सातों पृथ्वियों में मिथ्यादृष्टि जीव सर्वकाल पाए जाते हैं । एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल क्रमशः एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस और तेंतीस सागरोपम है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का काल, काल-अनुयोगद्वार में जो सामान्य रूप से बताया गया है, उसके अनुसार ही जानना चाहिए । असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव सातों नरकों में सब कालों में पाए जाते हैं। एक जीव विशेष की अपेक्षा से इनका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है, और उत्कृष्ट काल कुछ कम, प्रत्येक नरक की अपनी-अपनी उत्कृष्टकाल स्थिति के समान ही होता है।
तिर्यंचगति में सामान्यतः मिथ्यादृष्टि तिर्यंच जीव सर्व काल में पाए जाते हैं । किन्तु तिर्यंचगति में एक जीव की अपेक्षा से विचार करें तो मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल अनन्तकाल है, जो असंख्यात७६ पुद्गल परावर्तन परिमाण है । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानवर्ती तिर्यंच जीवों का काल सामान्य अपेक्षा से काल अनुयोगद्वार में जो कथन किया है, उसके अनुसार होता है, किन्तु एक जीव की अपेक्षा जघन्यकाल इन तीनों गुणस्थानों में अन्तर्मुहूर्त है। संयतासंयत गुणस्थानवर्ती तिर्यंच का उत्कृष्ट काल तीन पल्योपम है । सामान्यतः असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच जीव सभी कालों में होते हैं, किन्तु एक जीव की अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल तीन पल्योपम है । मनुष्यगति में मिथ्यादृष्टि मनुष्य सामान्यतः सभी कालों में पाए जाते है । मनुष्यगति में एक जीव की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का
२७४ उपशमश्रेणीवाला जीव मर कर एक समय कम तेंतीस सागरोपम की आयु लेकर अनुत्तर विमान में पैदा होता है । फिर पूर्व कोटि
आयुवाले मनुष्यों में पैदा होकर जीवनभर असंयम के साथ रहा है और मात्र जीवन का अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर संयम को प्राप्त होकर सिद्ध होता है । ऐसा संयत सम्यग्दृष्टि ही उत्ष्ट काल को प्राप्त होता है । यह काल अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि अधिक और एक समय कम तेंतीस
सागरोपम है। २७५ पूर्व कोटि आयुवाला जो समूर्छिम तिर्यंच उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त बाद वेदक सम्यक्त्व के साथ संयमासंयम को प्राप्त करता है । इस अपेक्षा से
संयमासंयम यह उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि है । २७६ जघन्यकाल एक समय मरण की अपेक्षा बतलाया है। २७७ जंघन्यकाल एक समय मरण की अपेक्षा बतलाया है। २७८ अन्तर्मुहूर्त कम इसीलिए कहा गया है कि प्रारम्भ के छः नरकों में जीव मिथ्यात्व के साथ ही उत्पन्न होते हैं, फिर अन्तर्मुहूर्त बाद सम्यक्त्व को प्राप्त
जीवनभर सम्यक्त्व के साथ रहकर उत्कृष्ट काल प्राप्त करते हैं । यहाँ ज्ञातव्य है कि नरक में प्रवेश और निर्गम-दोनों ही मिथ्यात्व गुणस्थान के साथ
ही होता है। २७६ यहाँ असंख्यात से आवलिका का असंख्यातवाँ भाग लिया गया है।
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