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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{144} जीव असंख्यातगुणित हैं। चारों कषायवाले जीवों में संयतासंयत गुणस्थानवर्ती जीवों से सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं। चारों कषायवाले जीवों में सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । चारों कषायवाले जीवों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं । चारों कषायवाले जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव अनन्तगुणित हैं । चारों कषायवाले जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा सामान्य से बताए गए अनुसार है । इसी प्रकार अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दो गुणस्थानों में चारों कषायवाले जीवों का सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व भी जानना चाहिए । चारों कषायवाले उपशामक जीव सबसे कम हैं। चारों कषायवाले उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। अकषायवाले जीवों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवर्ती जीव सबसे कम हैं, उन से क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। अकषायवाले जीवों में सयोगीकेवली और अयोगीकेवली-ये दोनों ही गुणस्थानवी जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प हैं। अकषायवाले इन जीवों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचयकाल की अपेक्षा संख्यातगुणित हैं। ज्ञानमार्गणा में मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानवाले जीवों में सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं । उपर्युक्त तीनों अज्ञानवाले सासादन गुणस्थानवर्ती जीवों से मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव अनन्तगुणित हैं तथा विभंगज्ञानवाले मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। आभिनीबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशमक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं । मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त के अनुसार है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों की अपेक्षा क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व पूर्वोक्त क्षपकों के समान है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीव संख्यातगुणित हैं। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगणित हैं। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में संयतासंयत गणस्थानवर्ती जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगणित हैं। उपर्युक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा, सामान्य से जैसी कही गई है, वैसी ही है । इसी प्रकार तीनों सम्यग्ज्ञानियों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । तीनों सम्यग्ज्ञानियों में उपशामक जीव सबसे कम हैं, उपशामकों से क्षपक संख्यातगुणित हैं। मनः पर्यवज्ञानियों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं । मनः पर्यवज्ञानियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवर्ती जीवों का अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। मनःपर्यवज्ञानियों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है। मनःपर्यवज्ञानियों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। मनःपर्यवज्ञानियों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से गुणस्थानवी जीव प्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं। मनःपर्यवज्ञानियों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। मनःपर्यवज्ञानियों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं, क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। इसी प्रकार मनःपर्यवज्ञानियों में अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । मनःपर्यवज्ञानियों में उपशामक जीव सबसे कम हैं, उपशामक जीवों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। केवलज्ञानियों में सयोगीकेवली और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य हैं। केवलज्ञानियों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचय काल की अपेक्षा अयोगीकेवली से संख्यातगुणित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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