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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{143} दोनों गुणस्थानवर्ती उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प हैं । पुरुषवेदवालों में उपर्युक्त दोनों गुणस्थानवर्ती उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । पुरुषवेदवालों में उपर्युक्त दोनों गुणस्थानों के क्षपकों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती संख्यातगुणित हैं । पुरुषवेदवालों में उपर्युक्त अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं, प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं । पुरुषवेदवालों में संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं, सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती संख्यातगुणित हैं । पुरुषवेदवालों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। पुरुषवेदवालों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा, जैसी सामान्य से कही गई हैं, वैसी ही है । इसी प्रकार पुरुषवेदवालों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दोनों गुणस्थानों में भी सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । पुरुष वेद वालों में उपशामक जीव सबसे कम हैं, उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । नपुंसकवेदवालों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दोनों गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प हैं । नपुंसकवेदवालों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दोनों गुणस्थानों में उपशामकों से क्षपक जीव प्रवेश की अपेक्षा संख्यातगुणित हैं । नपुंसकवेदवालों में क्षपकों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। नपुंसकवेदवालों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं, प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं, संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं, सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव अनन्तगुणित हैं। नपुंसकवेदवालों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा, जैसी सामान्य से कही गई है, वैसी ही है। नपुंसक वेदवालों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानों में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। नपुंसकवेदवालों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से उपशमसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं, उनसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं । इसी प्रकार नपुंसकवेदवालों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दोनों गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । नपुंसकवेदवालों में उपशामक जीव सबसे कम हैं। उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। अपगतवेदवालों में अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसंपराय-इन दो गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प हैं। अपगतवेदवालों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वानुसार ही है । अपगतवेदवालों में उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचय काल की अपेक्षा इनसे संख्यातगुणित हैं । क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है, सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचय काल की अपेक्षा इनसे संख्यातगुणित हैं। कषायमार्गणा में क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषायवाले जीवों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दो गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प ही हैं। चारों कषायवाले जीवों में उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । विशेष यह है कि लोभकषायवाले सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवर्ती उपशामको की अपेक्षा क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है, इनसे सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचयकाल की अपेक्षा संख्यातगुणित हैं । चारों कषायवाले जीवों में क्षपकों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती संख्यातगुणित हैं। चारों कषायवाले जीवों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। चारों कषायवाले जीवों में प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवर्ती Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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