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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा..... तृतीय अध्याय......{142} हैं और काययोगी तथा औदारिककाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से इन्हीं दोनों योगवाले मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव अनन्तगुणित हैं। बारह योगवाले जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा, सामान्यतः जैसा बताया गया है, उसी के अनुसार है। इसी प्रकार उपर्युक्त बारह योग वाले जीवों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में भी सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । उपर्युक्त बारह योगवाले जीवों में उपशामक सबसे कम हैं, उपशामकों से क्षपक संख्यातगुणित हैं। औदारिकमिश्रकाययोगियों में सयोगीकेवली गुणस्थानवर्ती जीव सबसे कम हैं, सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों से सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं, सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव अनन्तगुणित हैं। औदारिकमिश्रकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं। वैक्रियकाययोगियों में अल्प-बहत्व की प्ररूपणा देवगति के समान है। वैक्रियमिश्रकाययोगियों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं, सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं, असंयतसम्यग्दृष्टि गणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं । वैक्रियमिश्रकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में ही उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं, क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं, उपर्युक्त आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं। कार्मणकाययोगियों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं, सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से सास्वादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं, सास्वादनसम्यग्दृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं, असंयतसम्यग्दृष्टियों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती अनन्तगुणित हैं। कार्मणकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। कार्मणकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं। वेदमार्गणा में स्त्रीवेदवालों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दोनों ही गुणस्थानों में उपशमक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प है । स्त्रीवेदवालों में उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं, क्षपकों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती संख्यातगुणित हैं । उपर्युक्त अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीव संख्यातगुणित हैं । प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। स्त्रीवेदवालों में संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती संख्यातगुणित हैं। स्त्रीवेदवालों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती असंख्यातगुणित हैं। स्त्रीवेदवालों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं, उपर्युक्त दोनों गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों से उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। स्त्रीवेदवालों में उपर्युक्त दोनों गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं, स्त्री वेद वालों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। स्त्री वेद वालों में उपर्युक्त दोनों गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से उपशमसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। स्त्रीवेदवालों में उपर्युक्त दोनों गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। इसी प्रकार अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन दोनों गुणस्थान में स्त्रीवेदवालों का अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । स्त्रीवेदवालों में उपशामक जीव सबसे कम हैं । उपशामकों से क्षपक संख्यातगुणित हैं । पुरुषवेदवालों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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