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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{141) देवगति में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं। देवों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव संख्यातगुणित हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती देव असंख्यातगुणित हैं। देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि वाले देव सबसे कम हैं। उनमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं । देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों में क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में वेदकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं। देवों में भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क देव और इनकी देवियाँ तथा सौधर्म-ईशान कल्पवासिनी देवियों के अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा सातवीं पृथ्वी के नारकी जीवों के अल्प-बहुत्व के समान हैं। सौधर्म-ईशान कल्प से लेकर सहस्रार कल्प तक के कल्पवासी देवों में अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा देवगति के सामान्य कथन के समान हैं । आनत से लेकर नव ग्रैवेयक विमानों तक के विमानवासी देवों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती सबसे कम हैं । उपर्युक्त विमानवासी देवों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती देव संख्यातगुणित हैं । उनमें सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती देव असंख्यातगुणित हैं। उनमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देव संख्यातगुणित हैं। आनत कल्प से लेकर नव ग्रैवेयक तक देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि देव सबसे कम हैं। उन उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्यिों से वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं। नव अनुदिशी देवों से लेकर अपराजित नामक अनुत्तर विमान तक विमानवासी देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों में उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं। उपर्युक्त असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों में वर्तमान उपशमसम्यग्दृष्टियों की अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं, क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं। सर्वाथसिद्ध विमानवासी देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं, उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं और क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं।। इन्द्रियमार्गणा में पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तों में अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा जैसी सामान्य से कथित है, उसी के समान हैं, विशेष यह है कि उनमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। शेष एकेन्द्रिय आदि जीवों में एक मात्र मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का सद्भाव होने से उनमें अल्प-बहुत्व की संभावना नहीं है । कायमार्गणा में त्रसकाय और त्रसकाय पर्याप्तों में अल्प-बहुत्व, जैसा सामान्य से कहा गया है, वैसा ही है । मात्र विशेष यह है कि असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। योगमार्गणा में पांचों मनोयोगी. पांचों वचनयोगी. काययोगियों और औदारिककाययोगियों में अपर्वकरण आदि तीनों गुणस्थानवर्ती उपशमक जीव प्रवेश की अपेक्षा परस्पर तुल्य और संख्या की अपेक्षा अल्प हैं । उपर्युक्त बारह योगवाले उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व पूर्वोक्त परिमाण के अनुसार ही है। उनसे क्षपक संख्यातगुणित हैं। क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व पूर्वोक्त परिमाण के अनुसार ही है । उपर्युक्त बारह योगवाले सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों में प्रवेश की अपेक्षा उनका अल्प-बहुत्व पूर्वोक्त परिमाण के अनुसार ही है । सयोगीकेवली गुणस्थानवर्ती संचयकाल की अपेक्षा उनसे भी संख्यातगुणित है । सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से उपर्युक्त बारह योगवाले अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त बारह योगवाले अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त बारह योगवाले संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त बारह योग वाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से इन्हीं योगवाले मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती असंख्यातगुणित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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