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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{140} -- हैं। उपर्युक्त चारों प्रकार के तिर्यंचों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती तिर्यचों से सामान्य मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती तियंच अनन्तगुणित है, शेष तीन प्रकार के तिर्यंचों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती तिर्यंचों से असंख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त चारों प्रकार के तिर्यंचों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती तिर्यंच सबसे कम हैं। उपर्युक्त चारों प्रकार के तिर्यचों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती तिर्यंचों में उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि तिर्यच जीव असंख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त चार तिर्यंचों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त चार तिर्यचों में संयतासंयत गुणस्थानवर्ती में उपशमसम्यग्दृष्टि तिर्यंच सबसे कम हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि तिर्यच जीव असंख्यातगुणित हैं, विशेष यह है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। मनुष्यगति में मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशमक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य है और संख्या कि अपेक्षा सबसे कम हैं । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का परिमाण प्रवेश की अपेक्षा पूर्व में जैसा कहा है, वैसा ही है । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का परिमाण पूर्व में जैसा बताया गया है, वैसा ही है । उपर्युक्त तीनों प्रकार के मनुष्यों में सयोगीकेवली और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों में दोनों प्रवेश की अपेक्षा तुल्य है और परिमाण की अपेक्षा पूर्व में कहे अनुसार है। उक्त तीनों प्रकार के मनुष्यों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचयकाल की अपेक्षा संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से अक्षपक और अनुपशमक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । तीनों प्रकार के मनुष्यों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। संयतासंयत गुणस्थानवी जीव उन से भी संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती मनुष्यों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती मनुष्य असंख्यातगुणित हैं और शेष दोनों प्रकार के मनुष्य मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती से संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी मनुष्यों में उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम है। उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में संयतासंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम है। तीनों प्रकार के मनुष्यों में संयतासंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से उपशमसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं। उपशमसम्यग्दृष्टि से वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं। तीनों प्रकार के मनुष्यों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं । तीनों प्रकार के मनुष्यों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम है। तीनों प्रकार के मनुष्यों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित है। उपर्युक्त क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। विशेष यह है कि मनुष्यों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम है। मनुष्यों में उपर्युक्त असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से उपशमसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित है। इसी प्रकार उपर्युक्त तीनों प्रकार के मनुष्यों में अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानों में भी सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व इसी प्रकार हैं, उपर्युक्त तीन प्रकार के मनुष्यों में उपशामक मनुष्य सबसे कम हैं । उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगणित हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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