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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{139} ओघ अर्थात् सामान्य निर्देश से अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा परस्पर तुल्य तथा अन्य सभी गुणस्थानों की अपेक्षा अल्प हैं । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व, पूर्व में कहा, वैसा ही है । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थों से अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक संख्यातगुणित हैं। क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व, पूर्व में जैसा कहा गया है, वैसा ही है । सयोगीकेवली और अयोगीकेवली गुणस्थानवर्ती जीवों में प्रवेश की अपेक्षा दोनों ही तुल्य हैं और पूर्व में जैसा कहा है, वैसा है । सयोगीकेवली गुणस्थानवर्ती काल की अपेक्षा संख्यातगुणित हैं। सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से अक्षपक अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं। संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थावर्ती जीव अनन्तगुणित हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थावर्ती जीवों से उपशमकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से वेदक सम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । संयतासंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं । संयतासंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । संयतासंयत गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीवों में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं । प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों में क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से वेदक सम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं । इसी प्रकार अपूर्वकरणादि तीन उपशामक गुणस्थानवी जीवों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व समझना चाहिए, विशेष यह है कि यहाँ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व सम्भव नहीं होता है । अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव सबसे कम हैं। अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थावर्ती उपशमकों से इन तीनों ही गुणस्थानवर्ती क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । आदेश अर्थात् विशेष की अपेक्षा गति मार्गणा में नरकगति में नारकियों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव सबसे कम हैं। नारकियों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं। नारकियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। नारकियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदक सम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। इसी प्रकार प्रथम पृथ्वी के नारकियों का अल्प-बहुत्व जानना चाहिए। नरकगति में दूसरी पृथ्वी से लेकर सातवीं पृथ्वी तक के नारकियों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव सबसे कम है। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। नारकियों में दूसरी पृथ्वी से लेकर सातवीं पृथ्वी तक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणा हैं। नारकियों में द्वितीयादि छः पृथ्वियों के असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। नारकियों में द्वितीयादि छः पृथ्वियों के असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । तिर्यच गति में सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच और पंचेन्द्रिय योनिमति तिर्यंच जीवों में संयतासंयत सबसे कम हैं । उपर्युक्त चार प्रकार के तिर्यंचों में संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त चारों प्रकार के तिर्यंचों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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