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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{145} संयममार्गणा में संयतों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं । संयतों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । संयतों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों से क्षपकजीव संख्यातगुणित हैं। संयतों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवर्ती जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । संयतों में सयोगीकेवली और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और परिमाण में पूर्वोक्त ही हैं । संयतों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचय काल की अपेक्षा अयोगीकेवली संख्यातगुणित हैं । संयतों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । संयतों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानों में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं । संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती उपशम सम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। इसी प्रकार संयतों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए। संयतों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव सबसे कम हैं । संयतों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों के उपशमकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनीय शुद्धि संयतों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दो गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनीय शुद्धि संयतों में उपशामक से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनीय शुद्धि संयतों में क्षपकों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनीय संयतों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनीय संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानों में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। उपर्युक्त दोनों संयतों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। उपर्युक्त दोनों संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं । इसी प्रकार उपर्युक्त जीवों का अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण-इन दोनों गुणस्थानों में सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्प-बहुत्व जानना चाहिए । उपर्युक्त दोनों संयतों में उपशामक सबसे कम हैं। उपशामकों से क्षपक संख्यातगुणित हैं। परिहारविशुद्धि संयतों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं । परिहारविशुद्धि संयतों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। परिहारविशुद्धि संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। परिहारविशुद्धि संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। सूक्ष्मसंपराय शुद्धि संयतों में सूक्ष्मसंपराय उपशामक जीव अल्प हैं। सूक्ष्मसंपरायशुद्धि संयतों में उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। यथाख्यातविहार शुद्धि संयतों में अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा अकषायवाले जीवों के समान हैं। संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों में संयम मार्गणा की अपेक्षा अल्प-बहुत्व नहीं है । संयतासंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। संयतासंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि से उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। संयतासंयत गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतों में सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं। असंयतों में सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। असंयतों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव अनन्तगुणित हैं। असंयतों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। असंयतों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं।
दर्शनमार्गणा में चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनवाले जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ तक
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