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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{134} लेश्यामार्गणा में कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । एक जीव की अपेक्षा उनका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमशः कुछ कम तेंतीस, सत्रह, सात सागरोपम है । तीनों अशुभ लेश्यावाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में इन गुणस्थानों का अन्तरकाल, सभी जीवों की अपेक्षा जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है । एक जीव की अपेक्षा इन गुणस्थानों का जघन्य अन्तरकाल क्रमशः पल्योपम के असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त हैं। एक जीव की अपेक्षा भी इन्हीं का उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेंतीस सागरोपम, सत्रह सागरोपम और सात सागरोपम है । तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवों में, मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का अन्तरकाल सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है, वह निरन्तर है । एक जीव की अपेक्षा इनका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो सागरोपम और साधिक अठारह सागरोपम है। तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों में इन गुणस्थानों का अन्तरकाल, सभी जीवों की अपेक्षा जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है । एक जीव की अपेक्षा उनका जघन्य अन्तरकाल क्रमशः पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त है । एक जीव की अपेक्षा उनका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो सागरोपम और साधिक अठारह सागरोपम है। तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का अन्तरकाल सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है, वे निरन्तर हैं । शुक्ललेश्यावालों में, मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में, इन दोनों गुणस्थानों का अन्तरकाल सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है, वे निरन्तर हैं । एक जीव की अपेक्षा उनका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है । शुक्ललेश्यावाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इन दोनों गुणस्थानों का अन्तरकाल, सभी जीवों की अपेक्षा जैसा सामान्य से बताया है, वैसा ही है। एक जीव की अपेक्षा उनका जघन्य अन्तरकाल क्रमशः पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त है। एक जीव की अपेक्षा इनका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है । शुक्ललेश्यावाले, संयतासंयत और प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों में इन दोनों गुणस्थानों का अन्तरकाल सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है, वे निरन्तर हैं । एक जीव की अपेक्षा उनका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । शुक्ललेश्यावाले उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का, सभी जीवों की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है । एक जीव की अपेक्षा उनका अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । चारों क्षपक जीवों में इन चारों गुणस्थानों का अन्तरकाल, जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है । शुक्ललेश्यावाले सयोगीकेवली गुणस्थान का अन्तरकाल भी, जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है ।
भव्यमार्गणा में, भव्यसिद्धिकों में मिथ्यादृष्टि से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक के सभी गुणस्थानवर्ती भव्य जीवों में इन सभी गुणस्थानों का अन्तरकाल, जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है । अभव्यसिद्धिक जीवों में सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है, वे निरन्तर हैं, क्योंकि ये सभी मिथ्यादृष्टि ही रहते हैं।
सम्यक्त्वमार्गणा में सम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का अन्तरकाल, सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है, वे निरन्तर हैं । एक जीव की अपेक्षा इसका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष है । संयतासंयत गुणस्थान से लेकर उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टियों का अन्तरकाल अवधिज्ञानियों के समान है । सम्यग्दृष्टियों में चारों क्षपक और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों का अन्तरकाल, जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है । सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों का अन्तरकाल, जैसा सामान्य से कथित किया गया है, वैसा ही है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों का अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । एक जीव की अपेक्षा उनका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष है । क्षायिकसम्यग्दृष्टिवाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का अन्तरकाल सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है,
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