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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{127} अपेक्षा संयतासंयत गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के तिर्यंचों में इस गुणस्थान का उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि वर्ष पृथक्त्व है। गति की अपेक्षा पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त तिर्यंचों में सभी जीवों की अपेक्षा, अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर होते हैं । एक जीव की अपेक्षा पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त तिर्यंचों का जघन्य अन्तरकाल क्षुद्रभवग्रहण है । एक जीव की अपेक्षा पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त तिर्यंच का उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त कालस्वरूप असंख्यात पुद्गल परावर्तन हैं। यह अन्तर गति की अपेक्षा से है। गुणस्थान की अपेक्षा से लब्धि अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का एक तथा सभी जीवों की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार का अन्तर नहीं है, वे निरन्तर हैं ।
मनुष्यगति में मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर रहते हैं। एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इस मिथ्यात्व गुणस्थान का अन्तरकाल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है । एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में मिथ्यात्व का उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम है। सास्वादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इन दोनों गुणस्थानों का अन्तरकाल, सभी जीवों की अपेक्षा, जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है । एक जीव की अपेक्षा सास्वादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इन गुणस्थानों का जघन्य से अन्तरकाल क्रमशः पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त है। एक जीव की अपेक्षा द्वितीय और तृतीय गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इन दोनों गुणस्थानों का उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिवर्षपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम है। सभी जीवों की अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इस गुणस्थान का अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर होते हैं । एक जीव की अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इस गुणस्थान का जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। एक जीव की अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इस गुणस्थान का उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिवर्षपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम है। सभी जीवों की अपेक्षा संयतासंयत गुणस्थान से लेकर अप्रमत्तसंयत तक के गुणस्थानवर्ती इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में इन सभी गुणस्थानों का अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं। एक जीव की अपेक्षा इन तीनों गुणस्थानवर्ती उपर्युक्त मनुष्यों का जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। एक जीव की अपेक्षा पाँचवें, छठे और सातवें गुणस्थानवर्ती-इन तीन आकार के मनुष्यों में इनका उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिवर्षपृथक्त्व है। चारों उपशमकों का अन्तरकाल सभी जीवों की अपेक्षा, जघन्य से एक समय है। सभी जीवों की अपेक्षा, इन तीन प्रकार के मनुष्यों में चारों उपशमकों में इन चारों गुणस्थानों का अन्तरकाल उत्कृष्ट से वर्षपृथक्त्व है। एक जीव की अपेक्षा इन तीनों आकार के मनुष्यों में चारों उपशमकों में इन गुणस्थानों का जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । एक जीव की अपेक्षा इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में चारों उपशमकों का उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिवर्षपृथक्त्व है। सभी जीवों की अपेक्षा इन तीनों प्रकार के मनुष्यों में चारों क्षपक और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों में इन पाँचों गुणस्थानों का जघन्य अन्तरकाल एक समय है । सभी जीवों की अपेक्षा मनुष्य और मनुष्य पर्याप्तों में चारों क्षपक और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों में इन पाँचों गुणस्थानों का उत्कृष्ट अन्तरकाल छः मास तथा मनुष्यनियों में उनका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है । एक जीव की अपेक्षा क्षपकश्रेणी में इन गुणस्थानों में अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर होते हैं । सयोगीकेवली गुणस्थानवर्ती का अन्तरकाल जैसा सामान्य से बताया गया है, वैसा ही है। लब्धि अपर्याप्त मनुष्यों में सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल जघन्य से एक समय है। लब्धि अपर्याप्त मनुष्यों में उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। एक जीव की अपेक्षा लब्धिअपर्याप्त मनुष्यों में जघन्य अन्तरकाल क्षुद्रभवग्रहण और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुदगल परावर्तन है। यह अन्तरकाल गति की अपेक्षा से है। गुणस्थान की अपेक्षा से दोनों ही प्रकार के मनुष्यों का अन्तरकाल नहीं है ।
देवगति में मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों में इन गुणस्थानों का अन्तरकाल, सभी जीवों की अपेक्षा नहीं है, वे निरन्तर रहते हैं। एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देवों में इन गुणस्थानों
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