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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{125} जीवों में इस गुणस्थान का काल जो सामान्य से कहा गया है, उसी के समरूप है। शुक्ललेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्य के अनुरूप है । शुक्ललेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीव, सभी जीव की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा शुक्ललेश्यावाले पाचवें, छठे और सातवें गुणस्थानवर्ती जीवों में इस गुणस्थान का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । शुक्ललेश्यावाले चारों उपशमक, चारों क्षपक और सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का काल सामान्य कथन के अनुसार है । भव्यमार्गणा में भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का काल अनादि-सान्त और सादि-सान्त है । इनमें सादि-सान्त के मिथ्यात्व का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्तन है। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक उपर्युक्त भव्यसिद्धिक जीवों में इन-इन गुणस्थानों का काल जो सामान्य से कहा गया है, उसी के अनुसार है। अभव्यसिद्धिक जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा अभव्यसिद्धिक जीवों में मिथ्यात्व का काल अनादि-अनन्त है। सम्यक्त्वमार्गणा में सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टिवालों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणास्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्य कथन के अनुरूप है। वेदकसम्यग्दृष्टिवालों में असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक के गुणस्थानों का काल, जो सामान्य से कहा गया है, उसीके समरूप है। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों में इन दोनों गुणस्थानों का काल सभी जीवों की अपेक्षा, जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः पल्योपम का असंख्यातवां भाग है । एक जीव की अपेक्षा उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त है । प्रमत्तसंयत से लेकर उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में इन-इन गुणस्थानों का काल सभी जीवों की अपेक्षा, जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त है । एक जीव की अपेक्षा इन छहों गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में इन छहों गुणस्थानों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्यतः जो कहा गया है, उसीके अनुसार है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का काल जो सामान्य से बताया गया है, उसी के समरूप है। मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का काल भी जो सामान्य से कथन किया है, उसी के अनुरूप है । संज्ञीमार्गणा में संज्ञी जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती संज्ञी जीवों में इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल सागरोपमशतपृथक्त्व मात्र है। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के गुणस्थानवर्ती संज्ञी जीवों में इन-इन गुणस्थानों का काल, सामान्य से जैसा कहा गया है, उसीके अनुसार है। असंज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा असंज्ञी जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल अनन्तकालात्मक असंख्यात पुद्गल परावर्तन परिमाण है। पुष्पदंत एवं भूतबली आणीत षट्खण्डागम के जीवस्थान नामक आथम खण्ड के क्षेत्रानुगम नामक तृतीय द्वार'८३ में सर्वआथम बताया गया है कि क्षेत्रानुगम की अपेक्षा निर्देश दो आकार के है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। आदेश अर्थात् विशेष दृष्टि से गतिमार्गणा में नरकगति में नारकियों में मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती सभी जीवों की अपेक्षा से अन्तरकाल नहीं होता है, वे निरन्तर हैं। एक जीव की अपेक्षा प्रथम और चतुर्थ गुणस्थानवर्ती नारकियों में इन दोनों गुणस्थानों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है । एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि और अंसयतसम्यग्दृष्टि १८३ षट्खण्डागम, पृ १६६ से २१५, प्रकाशनः श्री श्रुतभण्डार व ग्रन्थ प्रकाशन समिति, फलटण Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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