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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय.......{124} क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के जीवों में इन-इन गुणस्थानों का काल सामान्य के समान है । मनःपर्यवज्ञानियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक का काल सामान्य के समान है। केवलज्ञानियों में सयोगीकेवली और अयोगीकवली गुणस्थान का काल सामान्य के समरूप है। संयममार्गणा में संयतों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक का काल सामान्य के अनुरूप है । सामायिक और छेदोपस्थापनीय शुद्धि संयतों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक का काल सामान्य के अनुरूप है । परिहारविशद्धि संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का काल सामान्य कथन के समरूप है। सूक्ष्मसंपरायशुद्धि संयतो में सूक्ष्मसंपरायशुद्धि संयत उपशमक और क्षपक जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्य कथन के अनुसार है। यथाख्यातविहारशुद्धि संयतो में अन्तिम चार गुणस्थानों का काल सामान्य कथन के अनुरूप है। संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्य कथन के समरूप है । असंयत जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसमयग्दृष्टि गुणस्थान तक का काल सामान्य कथन के समान है। दर्शनमार्गणा में चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल दो हजार सागरोपम है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के गुणस्थानवर्ती चक्षुदर्शनी जीवों में इन गुणस्थानों का काल सामान्य के समरूप है । अचक्षुदर्शनियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का काल सामान्य कथन के समान है । अवधिदर्शनी जीवों में इन गुणस्थानों का काल अवधिज्ञानियों के समान है । केवलदर्शनी जीवों में गुणस्थानों के काल का कथन केवलज्ञानियों के समान है। लेश्यामार्गणा में कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कपोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा तीनों अशुभ लेश्यावालों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल क्रमशः साधिक (दो अन्तर्मुहूर्त से अधिक) तेंतीस सागरोपम या साधिक सत्रह सागरोपम या साधिक सात सागरोपम परिमाण है । तीनों अशुभ लेश्यावाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्य कथन के अनुसार है। तीनों अशुभ लेश्यावाले जीवों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का काल सामान्य कथन के अनुरूप है । तीनों अशुभ लेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा तीनों अशुभ लेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अनुक्रम से कुछ कम तेंतीस सागरोपम, सत्रह सागरोपम और सात सागरोपम है । तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवों में मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ अधिक दो सागरोपम और पद्मलेश्यावाले उन्हीं जीवों में इन का उत्कृष्ट काल कुछ अधिक अठारह सागरोपम है । तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस का काल जो सामान्य से बताया गया है, उसी के अनुसार है । तेजो और पद्मलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों में इस गुणस्थान का जघन्य काल जो सामान्य से कथन किया गया है, उसी के समरूप है। तेजो और पद्मलेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा तेजो और पद्मलेश्यावाले पंचम, षष्ठ और सप्तम गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा इन जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागरोपम है। शुक्ल लेश्यावाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों में इस गुणस्थान का काल सामान्य कथन के अनुसार है। शुक्ललेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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