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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{105) संयतासंयत जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप हैं। असंयतों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक के जीवों की संख्या पल्योपम के संख्यातवें भाग के समान है।
__ दर्शनमार्गणा में चक्षुदर्शनी जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा चक्षुदर्शनी में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों के द्वारा सूची अंगुल के संख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर समाप्त होता है । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती चक्षुदर्शनी जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं। अचक्षुदर्शनियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गणस्थानवर्ती जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान है। अवधिदर्शनी जीवों की द्रव्यप्ररूपणा अवधिज्ञानियों के समान है । केवलदर्शन वाले जीवों की द्रव्य प्ररूपणा केवलज्ञानियों के समान है।
लेश्यामार्गणा में कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्यावाले जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान हैं। तेजोलेश्यावाले जीवों में मिथ्यावृष्टि गुणस्थानवी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा ज्योतिष देवों से कुछ अधिक हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती तेजोलेश्या से युक्त जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप है । तेजोलेश्यावाले जीवों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। पद्मलेश्यावाले जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव द्रव्य परिमाण की अपेक्षा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीवों के संख्यातवें भाग परिमाण हैं । पद्मलेश्यावाले जीवों में सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवों का द्रव्य परिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती पद्मलेश्यावाले जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। शुक्ललेश्यावाले जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव द्रव्य परिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं । इन जीवों के द्वारा अन्तर्मुहूर्त काल से पल्योपम समाप्त होता है। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। अपूर्वकरण गुणस्थान से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीवों का द्रव्यपरिमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप है । अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव लेश्यारहित हैं, क्योंकि उनमें कर्मलेप के कारणभूत योग और कषाय नहीं पाई जाती
भव्यमार्गणा में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुण स्थानवर्ती भव्य जीवों का द्रव्य परिमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान है। अभव्य जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा अनन्त हैं।
सम्यक्त्वमार्गणा में सम्यग्दृष्टि में असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अयोगीकेवली तक के प्रत्येक गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों के द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है, संयतासंयत गुणस्थान से लेकर उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। चारों क्षपक और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप हैं। सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है । वेदकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक के गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों की संख्या सामान्य प्ररूपणा के समान है । प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के उपशमसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है। मिथ्यादृष्टि गुण स्थानवी जीवों का द्रव्य परिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है।
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