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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{104} अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान तक के उपशमक और क्षपक जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। अपगतवेदी जीवों में तीनों गुणस्थान के उपशमक जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा और प्रवेश की अपेक्षा एक अथवा दो अथवा तीन अथवा उत्कृष्ट रूप से चौवन होते हैं । काल की अपेक्षा उपर्युक्त तीनों गुणस्थानवर्ती अपगतवेदी उपशमक जीव संख्यात हैं। अपगतवेदियों में तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक और अयोगीकेवली जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समतुल्य हैं। अपगतवेदियों में सयोगीकेवली जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप हैं। कषायमार्गणा में क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषायवाले और लोभकषायवाले जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में जीवों का द्रव्यपरिमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान है। प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक चारों कषायवाले जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। चारों कषायों के काल को जोड़ करके उसकी चार प्रतिराशियाँ करके अपने-अपने काल से अपवर्तित करने पर जो संख्या प्राप्त हो उससे इच्छित राशि के भाजित करने पर अपनी-अपनी राशि होती है । इस प्रकार इन गुणस्थानों में मानकषायवाले सबसे कम हैं। क्रोधकषायवाले मानकषायवाले जीवों से विशेष अधिक हैं। मायाकषायवाले क्रोधकषायवाले जीवों से विशेष अधिक हैं। लोभकषायवाले जीव मायाकषायवाले जीवों से विशेष अधिक हैं। विशेष यह है कि लोभकषायवाले जीवों में सूक्ष्मसंपरायशुद्धिसंयत उपशमक और क्षपक जीवों की संख्या पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समयों के समरूप है, क्योंकि क्षपक और उपशमक सूक्ष्मसांपरायिक जीवों में लोभकषाय को छोड़कर अन्य कोई भी कषाय नहीं होती है। कषायरहित जीवों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ जीवों के द्रव्यपरिमाण भी पल्योपम के संख्यातवें भाग के समयों के समान हैं। यहाँ भावकषाय के अभाव की अपेक्षा उपशान्तकषाय जीवों को अकषायी कहा है, द्रव्यकषाय के अभाव की अपेक्षा से नहीं; क्योंकि द्रव्यकर्म, उदय, उदीरणा, अपकर्षण, उत्कर्षण और पर प्रकृति संक्रमण आदि से रहित अपेक्षा से होता है । क्षीण कषाय वीतराग छद्मस्थ और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों की संख्या सामान्य प्ररूपणा के समान है। सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समयों के समरूप है। ज्ञानमार्गणा में मति-अज्ञानवाले और श्रुत-अज्ञानवाले जीवों में मिथ्यादृष्टि और सास्वादनसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समयों के समान है। विभंगज्ञानियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा देवों से कुछ अधिक हैं । विभंगज्ञानवाले सास्वादनसम्यग्दृष्टि जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं । आभिनिबोधिक ज्ञानवाले, श्रुतज्ञानवाले और अवधिज्ञानवाले जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समयों के समान हैं । अवधिज्ञानियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय वीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा से संख्यात है । मनःपर्यवज्ञानियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात है । केवलज्ञानियों में सयोगीकेवली गुणस्थानवर्ती और अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों की द्रव्य प्ररूपणा पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान है । संयममार्गणा में संयत जीवों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवों का द्रव्यपरिमाण सामान्य प्ररूपणा के समान है । प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर ऊपर के सभी गुणस्थानवी जीव संयत ही होते हैं। सामायिक और छेदोपस्थापनीय शुद्धिसंयत जीवों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिबादरसांपरायिक प्रविष्ट उपशमक और क्षपक गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव एल्योपम के असंख्यातवें भाग के समय के समरूप है । परिहारविशुद्धि संयतों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। सूक्ष्मसांपरायिक शुद्धि संयत जीवों में सूक्ष्मसांपरायिक शुद्धिसंयत उपशमक और क्षपक जीव द्रव्यपरिमाण से पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान हैं। यथाख्यातशुद्धिसंयतों में ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवी जीवों की संख्या सामान्य प्ररूपणा के समान है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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