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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{103} मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा त्रसकाय और त्रसकाय पर्याप्त में मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा त्रसकाय में मिथ्यादृष्टि जीवों के द्वारा सूची अंगुल के असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से और त्रसकाय पर्याप्तों में मिथ्यादृष्टि जीवों के द्वारा सूची अंगुल के संख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर समाप्त होता है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती त्रसकाय अपर्याप्त और त्रसकाय पर्याप्त जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप है । त्रसकाय लब्धि पर्याप्त जीवों का परिमाण पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्तों के परिमाण के समान है।
योगमार्गणा में पांचों मनोयोगियों और तीन वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा देवों के संख्यातवें भाग हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पूर्वोक्त आठ योगवाले जीवों का परिमाण पल्योपम के असंख्यातवे भाग हैं । प्रमत्तसंयत गणस्थान से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में पर्वोक्त जीवराशियाँ द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। वचनयोगियों और असत्यमषा अर्थात अनभय वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा वचनयोगी और अनुभय वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों के समरूप होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा वचनयोगियों और अनुभय वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि जीवों के द्वारा अंगुल के संख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर समाप्त होता है। सास्वादनसम्यग्दृष्टि आदि शेष गुणस्थानवर्ती वचनयोगी और अनुभय वचनयोगी सास्वादनसम्यग्दृष्टि आदि जीव मनोयोगियों के समान हैं। काययोगियों और औदारिक काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। ये दोनों ही जीवराशियाँ अनन्त हैं। काल की अपेक्षा काययोगी और औदारिक काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त नहीं होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा ये अनन्तानन्त लोक परिमाण हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक काययोगी और औदारिक काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव मनोयोगियों के समान हैं। औदारिक मिश्र काययोगी सास्वादनसम्यग्दृष्टि जीव सामान्य प्ररूपणा के समान अर्थात् पल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं। असंयतसम्यग्दष्टि और सयोगीकेवली औदारिकमिश्र काययोगी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। वैक्रियकाययोगियों में मिथ्यादष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा देवों के संख्यातवें भाग से कम हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दष्टि वैक्रियकाययोगी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा ओघ प्ररूपणा के समान अर्थात पल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं। वैक्रियमिश्रकाययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्य परिमाण की अपेक्षा देवों का संख्यातवाँ भाग हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दष्टि वैक्रियमिश्रकाययोगी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा ओघ प्ररूपणा के समान अर्थात पल्ययोपम के संर भाग हैं। आहारककाययोगियों में प्रमत्तसंयत जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा चौवन हैं। प्रमत्तसंयत गुणस्थान को छोड़कर दूसरे गुणस्थानों में आहारक शरीर नहीं पाया जाता है। आहारकमिश्रकाययोगियों में प्रमत्तसंयत जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। कार्मणकाययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समतुल्य है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि कार्मणकाययोगी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समतुल्य है। कार्मणकाययोगी सयोगीकेवली जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं। . वेदमार्गणा में स्त्रीवेदियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा देवियों से कुछ अधिक है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान प्रत्येक गुणस्थानवर्ती स्त्रीवेदी जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान हैं। प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिबादरसंपराय प्रविष्ट उपशमक और क्षपक गुणस्थान तक स्त्रीवेदी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा देवों से कुछ अधिक हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिबादरसंपराय प्रविष्ट उपशमक और क्षपक जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप हैं। नपुंसकवेदी जीवों में मिथ्यादृष्टि से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समरूप हैं । प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर
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