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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{102} अपर्याप्त, सक्ष्म एकेन्द्रिय, सक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त. सक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा अनन्त हैं।
काल परिमाण की अपेक्षा पूर्वोक्त एकेन्द्रियादि नौ जीवराशियां अनन्तानन्त अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा भी समाप्त नहीं होती हैं। अतीत काल के समयों की जितनी संख्या है, उससे भी बहुत अधिक उपर्युक्त बादर एकेन्द्रियादि जीवों का परिमाण हैं । क्षेत्र परिमाण की अपेक्षा से एकेन्द्रियादि नौ जीवराशियाँ अनन्तानन्त लोक परिमाण हैं । द्वीन्द्रिय,त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव तथा उन्हीं के पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों की संख्या द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं । काल की अपेक्षा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के पर्याप्त और अपर्याप्त जीव असंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के द्वारा सूची अंगुल के असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर समाप्त होता है । उन्हीं के पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों के द्वारा क्रमशः सूची अंगुल के असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से एवं सूची अंगुल के संख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रति भाग से जगप्रतर समाप्त होता है। पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों मे मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों के समतुल्य होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और पंचेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टियों के द्वारा सूची अंगुल के असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से और सूची अंगुल के संख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर समाप्त होता हैं। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव सामान्य प्ररूपणा के समान पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीव असंख्यातासंख्यात और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों द्वारा समाप्त होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों के द्वारा सूची अंगुल के असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रति भाग से जगप्रतर समाप्त होता
कायमार्गणा में पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय जीव तथा बादर पृथ्वीकाय, बादर अप्काय, बादर तेजसकाय, बादर वायुकाय, बादर वनस्पतिकाय के प्रत्येक शरीरी जीव तथा इन्हीं पांच बादर काय सम्बन्धी अपर्याप्त जीव, सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म अप्काय, सूक्ष्म तेजस्काय, सूक्ष्म वायुकाय जीव तथा इन्हीं चार सूक्ष्म सम्बन्धी पर्याप्त और अपर्याप्त जीव-ये प्रत्येक द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात लोक परिमाण हैं। बादर पृथ्वीकाय, बादर अप्काय तथा बादर वनस्पतिकाय-प्रत्येक शरीरी जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा बादर पृथ्वीकाय, बादर अप्काय, बादर वनस्पतिकाय पर्याप्त शरीरी जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों के समतुल्य होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा बादर पृथ्वीकाय, बादर अप्काय, बादर वनस्पतिकाय प्रत्येक शरीरी पर्याप्त जीवों के द्वारा सूची अंगुल के असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर समाप्त होता है। बादर तेजस्काय पर्याप्त जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। यह असंख्यात रूप परिमाण असंख्यात आवलियों के वर्गरूप हैं, जो आवलि के घन के भीतर आता है । बादर वायुकाय पर्याप्त जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा बादर वायुकाय पर्याप्त जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों द्वारा समाप्त होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा बादर वायुकाय पर्याप्त जीव असंख्यात जगप्रतर परिमाण हैं। यह असंख्यात जगप्रतर लोक के संख्यातवें भाग हैं। यहाँ संख्यात से घनलोक के भाजित करने पर बादर वायुकाय पर्याप्त जीवों का द्रव्यपरिमाण आता है। वनस्पतिकाय जीव, निगोद जीव, बादर वनस्पतिकाय जीव, सूक्ष्म वनस्पतिकाय जीव, बादर वनस्पतिकाय पर्याप्त जीव , बादर वनस्पतिकाय अपर्याप्त जीव, वनस्पतिकाय सूक्ष्म पर्याप्त जीव, वनस्पतिकाय सूक्ष्म अपर्याप्त जीव, निगोद बादर जीव, निगोद सूक्ष्म जीव, निगोद बादर पर्याप्त जीव, निगोद बादर अपर्याप्त जीव, निगोद सूक्ष्म पर्याप्त जीव और निगोद सूक्ष्म अपर्याप्त जीव-ये प्रत्येक वर्ग के जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा अनन्त हैं । काल की अपेक्षा उपर्युक्त चौदह जीव राशियाँ अनन्तानन्त अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त नहीं होती है। क्षेत्र की अपेक्षा ये जीव राशियाँ अनन्तानन्त लोक परिमाण हैं। त्रसकाय और त्रसकाय पर्याप्त में
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