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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
तृतीय अध्याय........{101}
मनुष्यनियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा करोड़ x करोड़ x करोड़ के ऊपर और करोड़ x करोड़ x करोड़ x करोड के नीचे छठे वर्ग के ऊपर और सातवें वर्ग के नीचे मध्य की संख्या परिमाण हैं। मनुष्यनियों में सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात है । लब्धिपर्याप्त मनुष्य द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा लब्धिपर्याप्त मनुष्य असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा लब्धिपर्याप्त मनुष्य जगश्रेणी के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। उस जगश्रेणी के असंख्यातवें भाग रूप श्रेणी का आयाम असंख्यात करोड़ योजन है । सूची अंगुल के तृतीय वर्गमूल से गुणित प्रथम वर्गमूल को शलाकारूप से स्थापित करके अधिक लब्धि पर्याप्त मनुष्यों द्वारा जगश्रेणी समाप्त होती है । सूची अंगुल के प्रथम और तृतीय वर्गमूल को परस्पर गुणित करने से जो राशि प्राप्त हो, उसमें जगश्रेणी को भाजित करके लब्ध राशि में से कम कर देने पर सामान्य मनुष्य राशि का परिमाण प्राप्त होता है। इसमें से पर्याप्ता मनुष्यराशि का परिमाण कम कर देने पर शेष लब्धि पर्याप्त मनुष्यों का परिमाण प्राप्त होता है।
देवगति में देवों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों के समान होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा जगप्रतर के दो सौ छप्पन अंगुलों के वर्गरूप प्रतिभाग से मिथ्यादृष्टि देवों की राशि प्राप्त होती है। सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि- सामान्य देवों का द्रव्यपरिमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। भवनवासी देवों में मिथ्यादृष्टि देव असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों द्वारा समाप्त होते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि भवनवासी देव असंख्यात जगश्रेणी परिमाण हैं, जो जगप्रतर के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। उन असंख्यात जगश्रेणियों की विषकम्भसूची, सूची अंगुल को सूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल से गुणित करने पर जो संख्या प्राप्त हो, उतनी है । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनवासी देव पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। वाणव्यन्तर देवों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा वाणव्यन्तर देवों का परिमाण असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों के समान होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा जगप्रतर के संख्यात सौ योजनों के वर्गरूप प्रतिभाग से वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टि जीवों की राशि प्राप्त होती है। सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यगमिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि वाणव्यन्तर देव पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण है, जितनी देवगति प्राप्त सामान्य देवों की संख्या अर्थात् असंख्यात ज्योतिषी देवों की संख्या है।
सौधर्म और ईशान कल्पवासी देवों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं । काल की अपेक्षा सौधर्म और ईशान कल्पवासी मिथ्यादृष्टि देवों की संख्या असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों के समयों के समान होती हैं । क्षेत्र की अपेक्षा सौधर्म और ईशान कल्पवासी मिथ्यादृष्टि देव असंख्यात जगश्रेणी परिमाण हैं । उन अंसख्यात जगश्रेणियों का परिमाण जगप्रतर का असंख्यातवाँ भाग है तथा उनकी विषकम्भसूची सूचीअंगुल के द्वितीय वर्गमूल को उसके तृतीय वर्गमूल से गुणित करने पर जो प्राप्त हो, उतनी है । सौधर्म, ईशान कल्पवासी सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। सातवीं नरक पृथ्वी में नारकीयों के द्रव्यपरिमाण के समान सनत्कुमार से लेकर सहस्रार तक के कल्पवासी देवों में मिथ्यादृष्टि देव असंख्यात हैं। आनत और प्राणत से लेकर नव ग्रैवयेक तक विमानवासी देवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती उक्त देव द्रव्य परिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। अनुदिश के विमानों से लेकर अपराजित विमान तक इन विमानों में रहनेवाले असंयतसम्यग्दृष्टि देव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। इन जीवराशियों के द्वारा अन्तर्मुहूर्त से पल्योपम समाप्त होता है । सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देव द्रव्यपरिमाण की अपेक्षा संख्यात हैं । विशेष यह है कि सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देव मनुष्यनियों के परिमाण से तीन गुणा हैं।
इन्द्रियमार्गणा में एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय पर्याप्त, एकेन्द्रिय अपर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय
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