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YHTARIT
सूरज अपने प्रकाश की रश्मियाँ अवनी पर बिखेरकर अन्धकार का हनन करता है । बादल अपनी शीलत फुहारों से वसुधा की तपन हरता है । उसी प्रकार सत्पुरुष भी अपने शुभ कार्यों की सुरभि से दशों दिशाओं को सुवासित करते हैं। मानव जीवन पाना तभी सार्थक है जब मनुष्य कुछ ऐसे कार्य करे जो मानवता के लिये प्रेरणादायक हो।
मेरी गुरुणीजी साध्वीजी श्री दर्शनकलाश्रीजी म. सा. ने गुणस्थान जैसा विषय पुस्तिका का नवसृजन कर अल्पायु में कलम की पूजारी बन समाज की साहित्य उपासना में नाम अंकित करवाया है। इस ग्रन्थ में चौदह गुणस्थानों का सारभूत वर्णन किया है जो एक अमूल्य निधि है।
अट्ठाई, तेला, बेला, आयम्बिल, उपवास, एकासना आदि होते हुए भी आपने इस ग्रन्थ के लेखन का कार्य निरन्तर रखा अपने अध्ययन को निरन्तर अध्ययनरत रखा।
विश्वास है यह पुस्तिका प्रकाशस्तम्भ बन कर भौतिक युग में अध्यात्म के सूत्रधार के रूप में सम्मानित होगी। और आपके जीवन में साधना एवं संयम से प्राप्त शक्तियाँ, गुरुजनों का आशीर्वचन तथा स्वजनों की मंगलकामना पाकर उसी प्रकार दीप्त हों जिस प्रकार फूलों की कलियों पर बिखरी स्वच्छ ओस बूंदें सूर्य की प्रथम किरण का स्पर्श पाकर चमचमाने लगती हैं। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ...
सदेव आपकी -साध्वी जीवनकलाश्री
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