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तपस्वीरत्ना साध्वीजी श्री शशिकलाश्रीजी म.सा. जन्म : वि.सं. 1888 जन्म नाम : शांताबहन पिता : बलु रामचन्दभाई जीतमलभाई माता : पार्वतीबहन दीक्षा
फागण सुद-10, वि.सं. 2032 दीक्षा स्थल : थराद दीक्षादाता : आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरिजी म.सा. दीक्षागुरु : साध्वी श्री मुक्तिश्रीजी म.सा. दीक्षीत नाम : सा.श्री शशीकलाश्रीजी म.सा.
आशिष
मेरी सुशिष्या साध्वी श्री दर्शनकलाश्री ने अपनी ये पीएच.डी. की उपाधि हेतु गुणस्थान जैसे गंभीर विषय पर अपना शोध प्रबन्ध लिखा था। उस पर उन्हें जैन विश्वभारती माननीय विश्वविद्यालय लाडनूं के द्वारा पीएच.डी. की उपाधि राष्ट्रपति अब्दुलकलामजी आजाद द्वारा 20 अक्टूबरं 05 को दिल्ली में डॉ.उपाधि प्रदान की गई।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि उनका शोध प्रबन्ध प्रकाशित हो रहा है। वस्तुतः जैन साधना लक्ष्य व्यक्ति का अपना आध्यात्मिक विकास करना है। व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास को मापने के लिये जैन आचार्यों ने गुणस्थान सिद्धांत की अवधारणा को प्रस्तुत किया है। जैन धर्म की श्वेताम्बर-दिगम्बर सभी शाखाओं के ग्रन्थों में इस सिद्धांत का विस्तार पूर्व प्रतिपादन किया हैं।
साध्वीजी ने कुल सभी प्राकृत एवं संस्कृत के मूल ग्रन्थों का अवलोकन करके उनमें उपस्थित गुणस्थान की अवधारणा को प्रस्तुत किया है। इस अध्ययन से न केवल उनका बौद्धिक विकास हुआ है, अपितु उनकी आध्यात्मिक रूचि भी विकसित हुई है। उनके इस ग्रन्थ के प्रकाशन की वेला में मैं यह आशीर्वाद देती हूँ कि वे अपना आध्यात्मिक विकास करते हुये जैन साहित्य के भण्डार को समृद्ध करती रहे और जैनशासन की प्रभावना में सहयोगी बनें एवं गुरुगच्छ की गरिमा को गौरवान्वित बनाये।
इसी मंगलकामना के साथ..............।
दिनांक 12-06-06
साध्वी श्री शशिकलाश्रीजी म.सा.
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