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________________ जैन साधना में समत्वयोग का स्थान सामायिक की साधना प्राथमिक है। समत्वयोग शब्द दो शब्दों से बना है - समत्व+योग। प्राचीन जैन आगम साहित्य में योग शब्द मन, वचन और काया की गतिविधियों का सूचक है।३ तत्त्वार्थसूत्र में भी मन, वचन और काया के व्यापार को ही योग कहा गया है।४ योगसूत्र में योगरूप मन, वचन और काया की इन प्रवृत्तियों को कर्मों के आस्रव का कारण भी माना गया है।५ सर्वार्थसिद्धि में मन, वचन और काया के द्वारा होने वाले आत्मप्रदेशों के परिस्पन्दन को योग कहा है।६ इस प्रकार जैन परम्परा में योग को बन्धन का कारण बताया गया है, किन्तु इसके विपरीत अन्य परम्पराओं में योग को मुक्ति का साधन माना जाता है। मुक्ति के साधन के रूप में योग शब्द की प्रतिष्ठा जैन परम्परा में आचार्य हरिभद्रसूरि ने ही सर्वप्रथम की है। उनके अनुसार योग वह है जो आत्मा को मोक्ष से जोड़ता है। वे लिखते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिये जो धर्मक्रिया अथवा विशुद्ध प्रवृत्ति की. जाती है वह धर्म प्रवृत्ति योग है। इस प्रकार जैन परम्परा में योग शब्द में एक परिवर्तन हुआ है। कालान्तर में वह बन्धन के कारण के स्थान पर मुक्ति का कारण मान लिया गया है। संस्कृत भाषा की दृष्टि से योग शब्द 'युज्' धातु से बना है। युज् धातु का अर्थ जोड़ना है। इस धात्वार्थ के आधार पर योग शब्द के दोनों ही अर्थ किये जा सकते हैं। जो आत्मा को कर्मों से या संसार से जोड़ता है, वह योग है। जो आत्मा को मुक्ति से जोड़ता है वह योग है। प्राचीन आगमिक परम्परा में जहाँ योग शब्द को संसार के कारणभूत आस्रव तत्त्व का वाची माना वहीं आचार्य हरिभद्र ने अन्य भारतीय चिन्तकों के समान योग को मुक्ति के साधन के रूप में स्वीकार किया। यद्यपि आचार्य हरिभद्र के पूर्व भी कुछ जैन ग्रन्थों में योग शब्द ध्यान और समाधि के वाचक के -तत्त्वार्थसूत्र ६/१। ५३ स्थानांगसूत्र ३ । ५४ 'काय-वाङ्-मनः कर्मयोगः' । ५५ 'मनोवाक्कायकर्माणि योगाः कर्म शुभाशुभम् । ___ यदाश्रवन्ति जन्तूनामश्रवास्तेन कीर्तिताः ।। ७४ ।।' ५६ सर्वार्थसिद्धि २/२६ । ५७ योगविशिंका । -योगशास्त्र ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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