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________________ आधुनिक मनोविज्ञान और समत्वयोग ३४५ ६.१ विक्षोभों और तनावों के मनोवैज्ञानिक एवं वैयक्तिक कारण ___ मानसिक विक्षोभों और तनावों के वैयक्तिक कारणों में सबसे प्रमुख कारण तो व्यक्ति में सम्यक् समझ (सम्यग्दृष्टिकोण) का अभाव होता है। व्यक्ति जब तक अपनी योग्यताओं और परिस्थितियों को सम्यक् प्रकार से नहीं समझता है, तब तक वह अपने और अपनी परिस्थितियों के मध्य सामन्जस्य स्थापित नहीं कर पाता। अपनी क्षमता और परिस्थितियों का सम्यक् बोध न होने से ही वह अपनी इच्छाओं और वासनाओं के अधीन होकर अपनी आकांक्षाओं का एक बहुत ही उच्च स्तर बना लेता है, जिसकी प्राप्ति उसकी वैयक्तिक क्षमताओं की कमी के कारण असम्भव होती है। जैसे कोई व्यक्ति अपनी योग्यता का विचार किये बिना ही भारत के राष्ट्रपति होने का स्वप्न संजोले। बिना अपनी क्षमता या योग्यता का विचार किये हुए जो व्यक्ति बड़े-बड़े स्वप्न संजो लेता है; वह उसमें असफल होने के कारण विकृत मानसिकता को जन्म देता है। अतः हम कह सकते हैं कि विक्षोभों और तनावों के उत्पन्न होने का वैयक्तिक या मनोवैज्ञानिक कारण स्वयं की क्षमताओं और परिस्थितियों का सम्यक् आकलन नहीं कर पाना ही है। आकांक्षाओं या इच्छाओं का स्तर जितना ऊँचा होगा; असफलताओं की सम्भावना भी उतनी अधिक होगी और असफलताएँ ही हमारे व्यक्तित्व को विसन्तुलित करने का कारण बनती हैं। यदि व्यक्ति को विक्षोभों और तनावों से बचना है तो उसे अपनी क्षमता और अपनी परिस्थिति दोनों का सम्यक् आकलन करना होगा। जैनदर्शन में इसे सम्यग्दर्शन कहते हैं। सम्यग्दर्शन का तात्पर्य है जीवन और जगत् के सम्बन्ध में सम्यक् समझ। जैनदर्शन की भाषा में कहें तो जब तक व्यक्ति के जीवन में सम्यग्दर्शन का विकास नहीं होता तब तक वह अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं के अधीन रहता है - मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विक्षोभों और तनावों से ग्रस्त रहता है। एक अन्य दृष्टि से विचार करें तो व्यक्ति की दमित इच्छाएँ और वासनाएँ ही चैतसिक स्तर पर उसके असन्तुलन का कारण होती हैं। इसीलिए जैनदर्शन में कहा गया है कि जब तक सम्यग्दर्शन नहीं होता; तब तक व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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