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अध्याय ६
आधुनिक मनोविज्ञान और समत्वयोग
आधुनिक मनोविज्ञान में विशेष रूप से तथा असामान्य मनोविज्ञान में मानसिक विक्षोभों एवं तनावों के स्वरूप एवं कारणों का विश्लेषण उपलब्ध होता है। इस सम्बन्ध में विशेष चर्चा तो असामान्य मनोविज्ञान के ग्रन्थों में की जाती है। आधुनिक मनोविज्ञान में तनाव-प्रबन्धन (स्ट्रेस मेनेजमेण्ट) नामक एक नई विधा का विकास हुआ है। इस विधा का सम्बन्ध जैनदर्शन के समत्वयोग की साधना से है। अतः इस सम्बन्ध में यहाँ कुछ चर्चा करेंगे।
आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार जब व्यक्ति में इच्छाओं और आकांक्षाओं का स्तर बहुत अधिक होता है, जैसा कि इस भौतिक उपभोक्तावादी संस्कृति में हुआ है, तब वह उनकी पूर्ति करने में असमर्थ होता है और उन इच्छाओं और आकांक्षाओं को दमित कर अपने अचेतन मन में डाल देता है। अचेतन में दबी हुई ये इच्छाएँ और वासनाएँ उसके व्यक्तित्व को असन्तुलित बना देती हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अपूर्ण इच्छाएँ वैयक्तिक असामान्यताओं को जन्म देती हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति की आत्मिक शान्ति अर्थात् समत्व भंग हो जाता है। ऐसा व्यक्ति बाह्य परिवेश से सन्तुलन बनाने में असमर्थ होता है। वह सदैव उद्विग्न बना रहता है। मनोवैज्ञानिकों ने इसके परिणामों की चर्चा करते हुए यह बताया है कि असन्तुलित व्यक्ति न केवल अपने परिवेश के साथ सामन्जस्य बनाने में असफल रहता है, अपितु उसमें हीन भावग्रन्थि या श्रेष्ठ भावग्रन्थि का विकास होता है। इस प्रकार वह यथार्थ से अपना मुख मोड़ लेता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इच्छाओं या आकांक्षाओं के अति उच्च स्तर के परिणामस्वरूप व्यक्ति के जीवन में विक्षोभों और तनावों का जन्म होता है। मनोवैज्ञानिक इन विक्षोभों और तनावों के परिणामों को स्पष्ट करते हुए यह बताते
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