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________________ समत्वयोग की वैयक्तिक एवं सामाजिक साधना ३०३ करता है। इस धरा पर ऐसे व्यक्तियों का जीवन धन्य है। वे कृत पुण्य हैं। ऐसी प्रमोद भावना निरन्तर करनी चाहिये। इस प्रकार प्रमोद भावना से ही व्यक्ति के चारित्र का विकास होता है और वह अपने जीवन में मूलभूत लक्ष्य समभाव को प्राप्त करता है। ३. कारुण्य भावना तीसरी भावना कारूण्य की है। असहाय और दुःखी जनों के प्रति करुणा का भाव हमारे मानवीय मूल्यों का परिचायक है। करुणा का प्रतिरोधी तत्त्व निष्ठुरता या क्रूरता है। क्रूर व्यक्ति का चित्त सदैव उद्वेलित बना रहता है। वह दूसरों के अहित के लिये ही प्रयत्नशील होता है। इसके विपरीत करुणाशील व्यक्ति दूसरों को सहयोग देकर उनके दुःखों को दूर तो करता ही है, किन्तु इसके निमित्त से उसके मन में जो प्रसन्नता और आत्मसन्तोष का भाव होता है, वह उसको आत्मिक शान्ति प्रदान करता है। करुणा या सेवा की भावना से दोनों को ही अर्थात जिसकी सेवा की जा रही है उसे और जो सेवा कर रहा है, उसे शान्ति मिलती है। यह शान्ति वैयक्तिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में समत्व की परिचायक है; क्योंकि तनावों से मुक्त शान्ति पूर्ण जीवन ही समत्वयोग की साधना का मुख्य लक्ष्य है। जहाँ शान्ति है, वहीं समत्व है और जहाँ समत्व है, वहीं शान्ति है। करुणा का अर्थ पर-दुःख-कातरता है। दुःखित, पीड़ित, पद-दलित और शोषित व्यक्ति के प्रति सहानुभूति और सेवा की वृत्ति ही करुणा है। दूसरे व्यक्ति को दुःखी या पीड़ित देखकर उसका दुःख दूर करना ही करुणा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो लोक-मंगल की भावना ही करुणा भावना है। इसे दया या सेवा की वृत्ति भी कहते हैं। निष्काम भाव से दूसरे प्राणियों के दुःखों को दूर करने का जो सात्विक प्रयत्न या पुरुषार्थ किया जाता है, उसे ही करुणा कहते हैं। यह करुणा धर्म का मूल तत्त्व है। सन्त तुलसीदासजी ने कहा है कि 'दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।' दया या करुणा की वृत्ति के अभाव में धर्म का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। आचार्य पद्मनन्दी पंचविंशतिका में लिखते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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