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________________ समत्वयोग की वैयक्तिक एवं सामाजिक साधना २५६ आसक्त आत्मा ही कर्मबन्ध करती है और अनासक्त आत्मा मुक्त हो जाती है।६४ अतः कषायों को क्षीण करने के लिये राग-द्वेष को क्षीण करना आवश्यक है। उत्तराध्ययनसूत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राग और द्वेष - ये कर्म के बीज हैं। कर्म के इन बीजों को समाप्त करने के लिये राग-द्वेष को समाप्त करना आवश्यक है।६५ जब राग-द्वेष समाप्त हो जाते हैं; तब जीवन में समत्व का प्रकटन होता है और जब जीवन में समत्व का प्रगटन होता है; तब वीतराग स्थिति बनती है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि समत्व की साधना वीतरागता की साधना है। आचार्य शुभचन्द्र ने यहाँ तक कहा है कि जो समत्व की भूमिका पर आरूढ़ है वह अपने समस्त कर्मों को निमिष मात्र में क्षय कर देता है।६ कर्मों का क्षय हो जाना ही वीतरागता की उपलब्धि है। अतः वीतरागता की उपलब्धि समत्व के बिना नहीं होती और समत्व की उपलब्धि वीतरागता के बिना सम्भव नहीं है। अतः यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि समत्व की साधना वीतरागता की साधना है और इसी साधना के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। ४.१० समत्व और मोक्ष जैनदर्शन के अनुसार समत्व और मोक्ष एक दूसरे के पर्यायवाची ही कहे जाते हैं। जैनदर्शन में मोक्ष को परम पुरुषार्थ या जीव का चरम साध्य माना गया है। भगवतीसूत्र में आत्मा के प्रयोजन या अन्तिम लक्ष्य के सन्दर्भ में गणधर गौतम के द्वारा प्रश्न किये जाने पर भगवान महावीर ने कहा था कि आत्मा का मुख्य प्रयोजन समत्व की उपलब्धि ही है। जैनदर्शन में मोक्ष की एक व्याख्या स्वरूप-उपलब्धि के रूप में की जाती है। इस व्याख्या के अनुसार आत्मा का अपने स्वस्वरूप में स्थित होना ही मोक्ष है। समयसार १५७ । ६५ 'रागो य दोसो वि य कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं च जाई-मरणस्स मूलं, दुक्खं च जाई-मरणं वयंति ।। ७ ।। '-उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ३२ । 'साम्यकोटिं समारूढो यमी जयति कर्म यत् । निमिषान्तेन तज्जन्मकोटिभिस्तपसेतरः ।। १२ ।।' -ज्ञानार्णव, सर्ग २४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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