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________________ समत्वयोग की वैयक्तिक एवं सामाजिक साधना २५७ असन्तुलन और अशान्ति उत्पन्न होगी। व्यक्ति को अपनी जैविक आवश्यकताओं को समझकर उनकी पूर्ति के लिये उपभोग-परिभोग के साधनों की एक सीमा निर्धारित करनी होगी। जैनदर्शन में गृहस्थ उपासकों के लिये यह स्पष्ट निर्देश है कि वह अपने भोग-उपभोग के साधनों को सीमित करे। ३. समत्वयोग की साधना के लिये हमें संचय वृत्ति से बचना होगा और इस हेतु हमारे उद्योग और व्यवसायों के लिये भी एक सीमा निर्धारित करनी होगी। उन उद्योग और व्यवसायों का परित्याग करना होगा, जिनके परिणामस्वरूप जीवों का विनाश या समाज में असन्तुलन का जन्म होता है। इसके लिये जैनाचार्यों ने एक ओर उन निषिद्ध व्यवसायों की लम्बी सूची प्रस्तुत की है, जो समत्वयोग के साधक के लिये वर्जित हैं। दूसरी ओर उन्होंने यह भी बताया है कि हमें अपनी व्यवसायिक प्रवृत्तियों के सीमा क्षेत्र का परिसीमन करना होगा। आज जो विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, वह भी किसी दिन अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिये खतरा बन सकता है। क्योंकि एक ओर उससे सामान्यजन की बेरोजगारी बढ़ती है, तो दूसरी ओर सम्पत्ति का संग्रह बढ़ता है। इसलिये जैन आचार्यों ने कहा है कि व्यक्ति अपने व्यवसायों की सीमा को भी निर्धारित करे जिससे समाज और अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में शान्ति बनी रहे। ४.६ समत्वयोग : वीतरागता की साधना ... पूर्व में हमने इस तथ्य को विस्तार से स्पष्ट किया है कि समत्व और वीतरागता एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। जो समत्व है, वही वीतरागता है और जो वीतरागता है वही समत्व है। अनुकूल और प्रतिकुल संयोगों में राग-द्वेष न करना यही समत्व की साधना है।' यह साधना वीतरागता के बिना सम्भव नहीं होती। क्योंकि यदि जीवन में राग-द्वेष के तत्त्व उपस्थित हैं, तो अनुकूल संयोगों में राग और प्रतिकूल संयोगों में द्वेष होना सम्भावित है और जब ६१ 'रागद्वेष भ्रमाभावे मुक्तिमार्गे स्थिरीभवेत् । संयमी जन्मकान्तारसंक्रमक्लेशशंकितः ।। १५ ।' -ज्ञानार्णव सर्ग २३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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