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________________ समत्वयोग की वैयक्तिक एवं सामाजिक साधना आधार पर स्थित होंगे, तो वे संघर्ष को जन्म देंगे। किन्तु यदि वे कर्तव्य के आधार पर स्थित होंगे, तो सामाजिक जीवन में सामन्जस्य होगा। समत्वयोग का सिद्धान्त यह बताता है कि हमारे पारस्परिक सम्बन्ध स्वार्थों के आधार पर नहीं; अपितु कर्त्तव्य के आधार पर स्थित होना चाहिये। कर्त्तव्य बोध ही व्यक्ति और परिवार तथा व्यक्ति और समाज के मध्य होने वाले संघर्ष अथवा एक समाज से दूसरे समाज के मध्य होने वाले संघर्षों का निराकरण कर सकता है। समत्वयोग की साधना का मुख्य उद्देश्य यही है कि व्यक्ति मेरे और पराये के भावों से ऊपर उठे और उसमें आत्मवत् दृष्टि का विकास हो। हमारे पारस्परिक सम्बन्ध स्वार्थों के आधार पर नहीं; अपितु कर्त्तव्य भाव के आधार पर स्थित हों। ४.४ समाजों के पारस्परिक संघर्ष __ संघर्ष न केवल व्यक्ति और समाज के बीच है, किन्तु विभिन्न समाजों, विभिन्न राष्ट्रों और विभिन्न धर्म सम्प्रदायों के मध्य भी संघर्ष देखे जाते हैं। संघर्ष चाहे व्यक्ति या व्यक्ति के मध्य में हो, व्यक्ति या समाज के मध्य हो अथवा दो भिन्न समाजों अथवा राष्ट्रों के मध्य हो, उनका मूल कारण तो कहीं न कहीं स्वार्थ या संग्रह की वृत्ति या अधिकार की भावना ही होती है। स्वार्थ न केवल वैयक्तिक होते हैं, अपितु वे सामाजिक भी होते हैं। जब एक समाज का स्वार्थ दूसरे समाज अथवा एक राष्ट्र का स्वार्थ दूसरे राष्ट्र अथवा एक धर्म परम्परा का स्वार्थ दूसरी धर्म परम्परा से टकराता है; तो समाजों, राष्ट्रों तथा सम्प्रदायों के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है। समाजों, राष्ट्रों अथवा धर्म सम्प्रदायों के मध्य होने वाले संघर्षों के मूल में या तो वर्गहित का प्रश्न होता है या फिर अधिकारों की भावना का। जिस प्रकार वैयक्तिक जीवन का स्वार्थ या अधिकार की भावना संघर्षों को जन्म देती है, उसी प्रकार अपने वर्गीय हितों और अधिकार की भावना के कारण सामाजिक संघर्षों का जन्म होता है। वर्तमान में विभिन्न समाजों, धर्म संघों और राष्ट्रों में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की जो प्रवृत्ति है, वही समाजों, धर्मों या राष्ट्रों के मध्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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