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________________ * साधना का मुख्य द्वार जिनकथित जैन धर्म में समता, सामायिक और सम्यक्त्व का अधिकाधिक महत्त्व है। और इन तीनों विषयों पर अनेक ज्ञानी परम ऋषियों ने अनेकानेक ग्रन्थ लिखे हैं। सिर्फ लिखे ही नहीं अपितु अपने जीवन में भी उतारा है और औरों के जीवन में भी उतारने का प्रयास किया है। ऐसा ही एक मीठा प्रयास है यह महाकाय ग्रंथ जिसमें समता, सामायिक और सम्यक्त्व इन तीनों पर विशेष तौर से महत्त्व देकर विशद् वर्णन किया गया है। समता आदि को साधने वाला व्यक्ति यदि समता आदि का पूर्ण महत्त्व न जानता हो तो इन धर्मों की कोई सार्थकता नहीं है। यानि इन धर्मों के बलबूते पर हमें हमारी मंजिल नहीं मिल सकती । अतः इन धर्मों की जानकारी भी उतनी ही आवश्यक है जितनी इन धर्मों की आवश्यकता । श्रुतसमुद्र की सतत समुपासना में संलग्न साधनामय जीवन और चारित्र के उच्चतम आयामों का संस्पर्श करते हुए पूजनीया साध्वी डॉ. प्रियवंदनाश्रीजी म. सा. 'जिन्होंने चारित्रमार्ग पर आगे बढ़ते अपने कदमकदम पर श्रुतसागर की तह तक जाकर अपने श्रम सींकरों से सिंचित शोध प्रबन्ध को प्रबुद्ध मनिषिओं एवं साधकों के लिए इस ग्रंथ के रूप में पेश किया है। मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आपश्री लिखित यह गागर में सागर समान महान् ग्रंथ समस्त मानव समाज को नई राह दिखाएगा। अंत में...परमात्मा आपको अपने बढ़ाये ग्रंथलेखन के कदम पर सफलता के शिखर पर ले जायें, और वही शिखर आपके साथ-साथ हम सबके लिए भी मोक्ष तक पहुँचने में सहायक बने, यही मंगल कामना के साथ.. नरेन्द्रभाई कोरडिया प्राचार्य - जैन ज्ञानशाला, नाकोडा तीर्थ, मेवानगर - 344025 (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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