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* एक चिन्तन *
संसार में प्राणी मात्र की अनादिकाल से सदैव एक ही इच्छा रही है कि वह सुखी रहे।
सामान्यतः मानव सुख प्राप्ति हेतु स्वयं के मन एवम् इन्द्रियों को प्रिय भौतिक साधन, सुविधाओं तथा सम्बन्धों को उपलब्ध करने का प्रयास करता है। बहुधा जो साधन प्रिय लगते हैं, वे मात्र सुखाभास होकर अन्ततः उनके परिणाम प्रतिकूल व दुःखों के कारण बनते हैं। पूर्वाग्रह रहित एकाग्रता विवेकपूर्वक चिन्तन करने पर ही सांसारिक पदार्थों, शक्तियों और व्यवहार का वास्तविक ज्ञान हो सकता है। इस हेतु समभाव (सामायिक) का अभ्यास अनिवार्य है।
पूज्य साध्वीजी श्री प्रियवन्दनाश्रीजी का शोध ग्रन्थ जैन दर्शन में समत्वयोग : एक समीक्षात्मक अध्ययन' सरल भाषा में बहुउपयोगी कृति है। इसका मनोयोग पूर्वक पठन, चिन्तन, मनन एवम् तदनुसार व्यवहार से प्रत्येक व्यक्ति निश्चित ही शाश्वत सुख की ओर अग्रसर हो सकता है।
नवीनचन्द्र नथमल सावनसुखा
इन्दौर, 26-10-2007
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