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________________ २०४ जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना का परित्याग और निरवद्य योग का प्रतिसेवन है।२६ सावद्य या सावज्ज शब्द का अर्थ है - हिंसा या पाप से युक्त क्रिया। इस प्रकार सामायिक या समत्वयोग की साधना अहिंसा या पाप प्रवृत्तियों से निवृत्ति की साधना है।३० एक अन्य जैनाचार्य ने सामायिक के लक्षण को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखना, इन्द्रियों और मन को नियन्त्रण में रखना, आर्त और रौद्र भावों का परित्याग करना और सभी जीवों के मंगल की शुभ भावना रखना - यही सामायिक की साधना है।३१ सामायिक की साधना में जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति आर्त और रौद्र विचारों का परित्याग करे। आर्त शब्द 'अर्ति' से निष्पन्न हुआ है - जिसका अर्थ है पीड़ा, क्लेश या दुःख। जैनागमों में व्यक्ति के दुःखी होने के चार कारण माने गये हैं - दुःख का प्रथम कारण अनिष्ट का संयोग है। जिन व्यक्तियों अथवा वस्तुओं या घटनाओं को हम नहीं चाहते हैं, उनके उपस्थित होने पर व्यक्ति का चित्त उद्वेगों या तनावों से ग्रस्त बनता है और वह उनके वियोग की आकाँक्षा करता है। इसी प्रकार दुःख का दूसरा कारण इष्ट का वियोग है - जो वस्तुएँ हमें प्रिय हैं, जिन्हें हम साथ रखना चाहते हैं, उन व्यक्तियों या वस्तुओं का वियोग होने पर भी व्यक्ति का चित्त विकल बन जाता हैं। वह उनके वियोग के दुःख अथवा उनके अनुपलब्ध होने पर उनकी पुनः प्राप्ति की आकाँक्षा से तनावग्रस्त बना रहता है। इस प्रकार इष्ट का वियोग और अनिष्ट का संयोग व्यक्ति की समता को भंग करता है। समत्वयोग के साधक को सबसे पहले इन अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने चित्त की समता को नहीं खोने की साधना करनी होती है। अनुकूल के लिये हमारे चित्त में रागभाव उत्पन्न होता है और प्रतिकूल के प्रति द्वेषभाव रहता है। जब तक राग-द्वेष के तत्त्व रहते हैं, तब तक चित्तवृति का समत्व सम्भव नहीं है। इसलिये समत्वयोग की साधना में साधक को इनसे बचने का प्रयत्न करना -नियमसार । १२६ विरदो सव्वसावज्जे तिगुत्तो पहिदिदिओ । ___ तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ।। १२५ ।।' १३० प्रश्नव्याकरणसूत्र २/४ । ३" उद्धृत सामायिक सूत्र पृ. ३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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