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________________ समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना २०३ दर्शन और चारित्र भी सम्यक् नहीं बनते। इसी प्रकार सामायिक चारित्र, छेदोस्थापनीय चारित्र, परिहारविशुद्धि चारित्र, सूक्ष्मसम्पराय चारित्र और यथाख्यात चारित्र में भी सामायिक चारित्र इसलिये प्रधान है कि इन सभी चारित्रों के परिपालन में सामायिक चारित्र का परिपालन तो निहित ही रहता है। सामायिक चारित्र का महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि चाहे कोई कितना ही तीव्र तप तपे अथवा जप करे अथवा आचार नियमों का पालन करे; परन्तु सामायिक अर्थात् समभाव की साधना के बिना. न तो किसी का मोक्ष हुआ है, और न होगा। पुनः यह भी कहा गया है कि तीव्रतम तप के करने से करोड़ो पूर्व जन्मों के संचित जो कर्म नष्ट नहीं हो पाते हैं, वे समभाव या समत्व की साधना के द्वारा आधे क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं। सामायिक को जैन धर्म में मोक्ष का निकटतम या साधकतम कारण माना गया है। कहा गया है कि जो कोई भी मोक्ष गये हैं, जो मोक्ष में जाते हैं और मोक्ष को प्राप्त करेंगे वे सभी सामायिक या समत्वयोग की साधना से ही मुक्ति को प्राप्त होते हैं। समत्वयोग की साधना के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। आचार्य हरिभद्रसूरि तो अपने व्यापक एवं उदार दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि व्यक्ति चाहे श्वेताम्बर हो या दिगम्बर हो, बौद्ध हो या अन्य किसी मत को मानने वाला हो, सामायिक या समभाव की साधना करने पर निश्चित ही मुक्ति को प्राप्त करता है - इसमें कोई सन्देह नहीं है।२८ ये सभी कथन इस बात को स्पष्ट करते हैं कि जैन साधना का आधार स्तम्भ समत्वयोग या सामायिक की साधना है। समत्वयोग या सामायिक की साधना के अभाव में साधना के अन्य सभी रूप केवल कर्मकाण्ड ही बन कर रह जाते हैं। सामायिक या समत्वयोग की साधना जैन साधना का प्राण है। सामायिक की साधना क्या है और कैसे होती है? इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए जैनाचार्य लिखते हैं कि सामायिक सावद्य योग १२८ 'सेयम्बरो वा आसम्बरो वा बुद्धो वा तहेव अन्नो वा । समभाव भावियप्पा लहइ मुक्खं न संदेहो ।' -हरिभद्रसूरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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