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________________ * शुभानुशंसा * 38 साध्वी श्री प्रियवंदनाश्रीजी का शोध प्रबन्ध जैन दर्शन में समत्वयोग : एक समीक्षात्मक अध्ययन' के प्रकाशन की पुण्य वेला पर हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। क्योंकि शोध प्रबन्ध के लेखक और मार्गदर्शक दोनों के लिए सर्वाधिक प्रमोद का विषय यही होता है कि उनका ग्रन्थ प्रकाशित हो जाए। ___ समत्वयोग न केवल जैन धर्म-दर्शन की साधना का उत्स है अपितु समस्त साधना विधियां इस मूलभूत सिद्धान्त को मान्यकर के चलती हैं। समत्व योग की साधना परमात्म पद की आराधना है। गीता में समत्वयोग को सभी योगों का सारतत्व बताया है। समत्वयोग साध्य योग है तथा ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग उसके साधन हैं। साध्वी श्री प्रियवंदनाश्रीजी ने मेरे मार्गदर्शन और सान्निध्य में रहकर समत्वयोग जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर अपना शोध प्रबन्ध लिख कर जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय लाडनूं से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी। आज उनका यह शोध प्रबन्ध प्रकाशित हो रहा है, यह उनके लिए और हम सबके लिए प्रमोद का विषय है। __प्रस्तुत कृति का स्वाध्याय करके हम सबका जीवन समत्व भावना से सार्थक बने, इसी शुभ भावना के साथ यह अपेक्षा करता हूँ कि साध्वीश्री जी निरन्तर ज्ञानाराधना में रत रहकर स्व-पर कल्याण करें। ___ - डॉ. सागरमल जैन संस्थापक-निदेशक : प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म.प्र) Ramai प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म.प्र.) - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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