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* संपादकीय *
शोध प्रबन्ध का संपादन सरल भी है, विषम भी। 'जैन दर्शन में समत्वयोग : एक समीक्षात्मक अध्ययन' के संपादन में हुई अनुभूतियाँ मस्तिष्क में छाप छोड़ गयीं कि समत्वयोग का पुरुषार्थ ही आदर्श जीवन का आधार है जो सिद्धालय प्रवेश निश्चित कर सकता है । जिसने भी इसको अपना लिया वह दुःख रूपी, दुःखदायी, दु:ख परंपरा वाले संसार से पार हो शुद्ध, बुद्ध, मुक्त बन गया।
पू. साध्वी प्रियवंदनाश्रीजी ने अपने शोध प्रबन्ध में समत्वयोग के स्वरूप, हेतु, आश्रय, आलंबन का सुन्दर विवेचन किया है। उनकी सशक्त कलम से प्रेरक तत्त्वों का सतत उद्घाटन होता रहे, यही शुभकांक्षा...
डॉ. ज्ञान जैन, B.Tech., M.A., Ph.D. 37, पेरूमाल मुदली स्ट्रीट, चेन्नई - 600 079.
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