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* मंगल शुभेच्छा*
शोध-प्रकाशन की पुनित वेला में बसवनगुड़ी श्रीसंघ अत्यन्त ही गौरव का अनुभव कर रहा है। हम सभी का मन आज पुलकित है। प्रभु की परम कृपा से, गुरुदेव के असीम आशीर्वाद से, गुरुवर्या श्री प.पू. सुलोचनाश्रीजी म.सा. एवं प.पू. सुलक्षणाश्रीजी म.सा. की कृपा से एवं डॉ. सागरमलजी सा के कुशल निर्देशन में द्वय साध्वीवर्या ने अपने वर्षों से संजोये सपने को साकार रूप दिया। उन्होंने अपनी प्रज्ञा छैनी से प्रतिभा का सम्यक् उपयोग किया। निश्चित रूप से यह श्रुतार्जन गहरी लगन का द्योतक है।
साध्वी श्री प्रियलता श्रीजी ने जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा'ग्रंथ का निर्माण कर बहिरात्मा से अन्तरात्मा और अन्तरात्मा से परमात्मा दशा का उल्लेख कर जन समुदाय को यथार्थ धरातल पर आत्मसात् करने का मार्गदर्शन कराया। साथ ही साध्वी श्री प्रियवंदना श्रीजी ने जैन दर्शन में समत्वयोग'ग्रंथ का आलेखन कर शोध यात्रा को सफलतम ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
प्रबल-पुण्योदय से एक साथ दो ग्रंथों के प्रकाशन का अपूर्व अवसर प्राप्त कर हमारा श्री संघ लाभान्वित हो रहा है। द्वय साध्वीवर्या द्वारा संशोधित, नवनिर्मित कृति संत, संघ व समाज के लिए सर्वोपयोगी सिद्ध होगी। सभी दार्शनिकों ने जीवन का मूलाधार आत्मा व समत्व को स्वीकार किया है।
वर्तमान बाह्य परिवेश में..इन्टरनेट, कम्प्युटर युग में ऐसे प्रेरणा-स्रोत ग्रंथों का नियोजन होना चाहिये। पाठकवर्ग के लिए यह कृति ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय हेतु अतीव उपयोगी होगी। पूजनीया साध्वी श्री का सफलतम परिश्रम एवं ज्ञान के प्रति समर्पण स्तुत्य व अभिनन्दीय है। जिनशासन की गोद में अपूर्व धरोहर रूप शोध प्रबन्ध प्रदान किया इसी तरह भविष्य में अनेकविध ग्रंथ प्रदान कर शासन सेवा में रत रहें। साध्वी श्री द्वय को बधाई देते हुए हमारा समस्त श्री संघ गौरवान्वित है। यह कृति जनमानुष के मनोमस्तिष्क का परिमार्जन, परिष्कृत करें। यही शुभेच्छा....
श्री जिनकुशल सूरि जैन दादावाडी ट्रस्ट 72, के.आर. रोड, बसवनगुड़ी, बेंगलौर - 560 004. कर्नाटक
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