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________________ समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना १५५ अवस्थाएँ है। उसका ज्ञानात्मक पक्ष सम्यक् (यथार्थ) होने पर भी आचरणात्मक पक्ष असम्यक् होता है। जैनदर्शन की अपेक्षा से दर्शनमोहनीयकर्म के आवरण का अभाव होने पर या इस आवरण के क्षीण हो जाने पर जीवात्मा को यथार्थ का बोध तो होता है किन्तु चारित्रमोहनीयकर्म का उदय बना रहने से साधक का आचरण सम्यक् नहीं होता है। इस गुणस्थानवी जीव एक अपंग व्यक्ति के समान होता है, जो देखता तो है किन्तु चल नही पाता है। अविरत सम्यग्दृष्टि आत्मा सम्यक् मार्ग या समत्व के मार्ग को जानते हुए भी उसका आचरण नहीं कर पाती, क्योंकि वह हिंसा, झूठ, अब्रह्मचर्य आदि सावध व्यापारों का परित्याग नहीं कर पाती है। इसलिये वह अविरत सम्यग्दष्टि कही जाती है। पापजनक प्रवृत्तियों से पृथक् हो जाने को विरत कहते हैं। यदि कोई जीवात्मा पापजनक प्रवृत्तियों से विरत नहीं होती है, तो वह अविरत सम्यग्दृष्टि कहलाती है।३ फिर भी अविरत सम्यग्दृष्टि आत्मा में क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों के स्थायी तथा तीव्रतम आवेगों का अभाव होता है; क्योंकि जब तक कषायों के इन तीव्रतम आवेगों अर्थात् अनन्तानुबन्धी चौकड़ी का क्षय या उपशम नहीं होता, तब तक उसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती। अविरत सम्यग्दृष्टि आत्मा का किसी अंश में समत्व की ओर झुकाव अवश्य रहता है। __ जैन धर्म के अनुसार अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती आत्मा को निम्न सात कर्म-प्रकृतियों का क्षय, उपशम या क्षयोपशम करना होता है : १. अनन्तानुबन्धी क्रोध; २. अनन्तानुबन्धी मान; ३. अनन्तानुबन्धी माया; ४. अनन्तानुबन्धी लोभ; ५. मिथ्यात्व मोह; ६. मिश्र मोह; और ७. सम्यक्त्व मोह। आत्मा जब इन सात कर्म-प्रकृतियो को पूर्णतः क्षय करती है, तो ही वह सातवें गुणस्थान को प्राप्त कर सकती है। वही क्षायिक सम्यक्त्व कहलाता है। क्षायिक सम्यक्त्व से युक्त आत्मा इस ४३ ‘णो इन्दियेसु विरदो णो जीवे थावरे तसे वापि । जो सद्दहदि जिणुत्तं सम्माइट्ठी अविरदो सो ।। २६ ।। -गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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