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अध्याय ३
समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना
३.१ समत्वयोग में साध्य, साधक और साधनामार्ग
का पारस्परिक सम्बन्ध । समत्वयोग की साधना में सब से महत्त्वपूर्ण पक्ष समत्वयोग के साधक, साध्य और साधनामार्ग के पारस्परिक सम्बन्ध को समझना है। समत्वयोग की साधना का साध्य तो समत्व की उपलब्धि ही है। हमारे आध्यात्मिक और व्यवहारिक जीवन का लक्ष्य असन्तुलन, कुसंयोजन और अव्यवस्था को समाप्त करके एक सुसन्तुलित, सुसंयोजित, सुव्यवस्थित और समत्वपूर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। समत्वयोग की साधना का समग्र प्रयत्न सामाजिक एवं वैयक्तिक जीवन में उपस्थित संघर्षों को समाप्त करना है। यह वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर समत्व की स्थापना का प्रयत्न है। इस प्रकार समत्वयोग का साध्य वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में रहे हुए असन्तुलन को समाप्त करके जीवन में समत्व की उपलब्धि ही है। __ वर्तमान में मनुष्य का जीवन तनावों एवं संघर्षों से परिपूर्ण है। व्यक्ति एक ओर इच्छा और आकाँक्षाजन्य आन्तरिक संघर्षों से अपने चैतसिक सन्तुलन को भंग करता है, तो दूसरी ओर सामाजिक संघर्षों को जन्म देता है। इसके परिणामस्वरूप वैयक्तिक और सामाजिक जीवन की शान्ति भंग हो जाती है; किन्तु जीवन का साध्य तो सन्तुलन या समत्व को बनाये रखना है। जब भी आन्तरिक और बाह्य निमित्तों से यह सन्तुलन टूटता है, तब उसे पुनः स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है। सन्तुलन को पुनः स्थापित करने का यह प्रयत्न ही साधनामार्ग है। इस प्रकार साध्य और साधना एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न नहीं हैं। जीवन का साध्य ही हो सकता है, जो स्वयं उसके स्वभाव में
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