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________________ जैनदर्शन का त्रिविध साधनामार्ग और समत्वयोग का चिन्तन आवश्यक बताया गया है। ये बारह भावनाएँ मन के वे भावनात्मक पहलू हैं, जो साधक को उसकी वस्तुस्थिति का बोध कराते हैं। भावना विहीन धर्म शून्य है । वास्तव में भावना ही परमार्थ स्वरूप है । इन भावनाओं का विस्तार से विवेचन हमने चतुर्थ अध्याय में किया है। यहाँ हम केवल इनके नामों का ही उल्लेख करते हैं : (१) अनित्य; (२) अशरण; (५) संसार; (६) लोक; (६) संवर; (१०) निर्जरा; २५० (३) एकत्व; (७) अशुचि; (११) धर्म; और २४८ २४६ २५० -२५१ प्रकारान्तर से जैन परम्परा में चार भावनाओं का विवेचन भी उपलब्ध होता है । तत्त्वार्थसूत्र, योगशतक, अमितगति, तथा योगशास्त्र आदि अनेक ग्रन्थों में मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थ इन चार भावनाओं का उल्लेख भी मिलता है । ये भावनाएँ समत्वयोग की साधना के लिए आवश्यक हैं । २५१ २.३.२ सामायिक चारित्र एवं समत्वयोग की साधना I पूर्व में हमने चारित्र के भेदों की चर्चा करते हुए यह देखा था कि जैन धर्म में पांच प्रकार के सम्यक्चारित्र प्रतिपादित किये गए हैं । उनमें सामायिक चारित्र का सबसे प्रथम स्थान है । इसके पूर्व भी हमने सामायिक और समत्वयोग की साधना में तारतम्य बताया था कि जैन साधना को यदि एक ही वाक्य में कहना हो, तो वह समत्वयोग या सामायिक की साधना है । सामायिक का तात्पर्य समभाव की उपलब्धि ही माना गया है । सामायिक की साधना का मतलब यही है कि व्यक्ति राग-द्वेष और तद्जन्य कषायों से ऊपर उठे । कषायों के रूप में जैनदर्शन में निम्न चार कषायें मानी गई (४) अन्यत्व; (८) आनव; (१२) बौद्धि । २४८ 'मैत्रीप्रमोद - कारूण्य - माध्यस्थ्यानि ।। ६ ।।' २४६ योगशतक ७६ । 'सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोद, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माष्यसीभावं विपरीतवृतौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ।। ' - परमात्मा ज्ञात्रिशिका ( अमितगति ) । 'मैत्रीप्रमोद - कारूण्य- माध्यस्थ्यानि नियोजयेत् । धर्मध्यानमुपस्कर्तुं तद्धि तस्य रसायनम् ।। ११७ ।।' - योगशास्त्र ४ । Jain Education International १२१ For Private & Personal Use Only - तत्त्वार्थसूत्र ७ । www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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