SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ जैन दर्शन में समत्वयोग की साधना साधक गुरू के समक्ष श्रमण संस्था में प्रविष्ट होने के हेत सर्वप्रथम यही प्रतिज्ञा करता है कि “हे पूज्य! मैं जीवन पर्यन्त के लिए समत्वभाव को स्वीकार करता हूँ और सम्पूर्ण सावध क्रियाओं का परित्याग करता हूँ। मैं मन, वचन और काया से न तो कोई अशुभ प्रवृत्ति करूंगा, न कराऊंगा और न ही करने वाले का अनुमोदन करूंगा। मेरे द्वारा पूर्व में हुई अशुभ प्रवृत्तियों की निन्दा करता हूँ - गर्दा करता हूँ।" जैन धर्म में साधना के दो पक्ष बताये है - आन्तरिक और बाह्य। श्रमण जीवन आन्तरिक साधना की दृष्टि से समत्व की साधना है। इसके द्वारा साधक को राग-द्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठना और बाह्यरूप से सावध प्रवृत्तियों से निवृत होना है। जब तक विचारों में समत्व नहीं आता, तब तक साधक सावध क्रियाओं से पूर्णतः निवृत्त नहीं हो सकता है। जैन श्रमणों के प्रकार जैन परम्परा में श्रमणों का वर्गीकरण उनके आचार, नियम तथा साधनात्मक योग्यता के आधार पर किया गया है। आचरण के नियमों के आधार पर श्वेताम्बर परम्परा में साधु के दो प्रकार स्वीकार किये गए हैं - जिनकल्पी और स्थविरकल्पी। जिनकल्पी मुनि सामान्यतः नग्न एवं पाणिपात्र होते हैं तथा एकाकी विहार करते हैं। जबकि स्थविरकल्पी मुनि सवस्त्र, सपात्र एवं संघ में रहकर साधना करते हैं। स्थानांगसूत्र में साधनात्मक योग्यता के आधार पर श्रमणों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है :१३० १. पुलाक : जो श्रमण साधना की दृष्टि से पूर्ण पवित्रता को प्राप्त नहीं हुए हैं। २. बकुश : जिनके साधक जीवन में कषायभाव एवं आसक्ति होती है। ३. कुशील : जो साधु जीवन के प्राथमिक नियमों अर्थात् मूलगुणों का पालन करते हुए भी उत्तर गुणों का समुचित रूप से पालन नहीं करते, वे कुशील हैं। ऐसे साधक निम्न १३० विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति ७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy