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________________ प्रस्तावना ७ षष्ठ परिच्छेद 'रीति निश्चय' है। इसमें १७ पद्योंमें वैदर्भी, · गौड़ी, लाटी और पांचाली रीतियोंका स्वरूप वर्णित है। सप्तम परिच्छेद 'वृत्तिनिश्चय' है। इसमें १६ पद्य है । और कैशिकी, आरभटी, भारती और सात्वती इन चार वृत्तियोंका स्वरूप निर्धारित किया गया है। अष्टम परिच्छेद 'शय्यापाक निश्चय' है। इसमें दस पद्य हैं। इस परिच्छेद में शय्या और द्राक्षापाक तथा नालिकेरपाक आदि पाकका स्वरूप प्रतिपादित है। नवम परिच्छेद 'अलंकारनिर्णय' है। इसमें ३१० पद्य है। इसमें यमक, चित्र, वक्रोक्ति और अनुप्रास ये चार शब्दालंकार और स्वभावोक्ति, रूपक, हेतु, दीपक, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विभावना, आक्षेप, अतिशयोक्ति, सूक्ष्म, समास, उदात्त, अपह्नति, प्रेयस्, रसवत्, ऊर्जस्व, तुल्ययोगिता, पर्यायोक्ति, सहोक्ति, परिवृत्ति, श्लेष, निदर्शन, व्याजस्तुति, आशी, समुच्चय, वक्रोक्ति, अनुमान, विषम, अवसर, प्रतिवस्तूपमा, सार, भ्रान्तिमान्, संशय, एकावली, परिकर, परिसंख्या, प्रश्नोत्तर, संकर आदि अर्थालंकारोंके लक्षण और उदाहरण निबद्ध है। दशम परिच्छेद 'गुणदोषनिर्णय' है। इसमें पददोष, वाक्यदोष, अर्थदोष और गुणोंका निरूपण आया है । इसमें १९७ पद्य है। अलंकारचिन्तामणि और शृङ्गारार्णवचन्द्रिकाकी विषय सामग्रीकी तुलना करनेसे अवगत होता है कि इन दोनों ग्रन्थों में वर्णित विषय प्रायः समान है। पर अलंकारचिन्तामणिमें विषय प्रतिपादनकी पद्धति आचार्य की है। अजितसेन सिद्धान्त स्थापना करते समय स्वतः विषय मीमांसा करते चलते हैं। अलंकारचिन्तामणिका अलंकार प्रकरण शृङ्गारार्णवचन्द्रिकाकी अपेक्षा कई दृष्टियोंसे विशेष है। इसमें अलंकारोंका वर्गीकरण निश्चित आधार पर किया गया है तथा स्वरूप निर्धारणमें लक्षणके पदोंकी सार्थकता पर भी विचार किया है। प्रत्येक लक्षणको अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असम्भव दोषसे रहित निबद्ध किया है। अलंकारोंका पारस्परिक भेद इस रचनामें विद्यमान है, पर शृंगारार्णव चन्द्रिकामें इस प्रकारकी मीमांसाका अभाव है। . महाकाव्यका वर्ण्य विषय, काव्यकी परिभाषा, चित्रालंकारका निरूपण, यमकके भेद-प्रभेद, गुणालंकारमें पारस्परिक भेद, दोषोंका सोदाहरण तर्क पूर्वक निरूपण अलंकारचिन्तामणिमें आया है, पर शृंगारार्णवचन्द्रिकामें इन बातोंका अभाव है। . अलंकारचिन्तामणिका प्रत्येक विषय विज्ञानके धरातल पर प्रतिष्ठित है। विचार करने की पद्धति मौलिक है। भामह, भोज, मम्मट आदिके ग्रन्थोंसे सामान्य सिद्धान्त ग्रहण कर भी आचार्यने मौलिकताका पूरा निर्वाह किया है । अलंकार प्रकरणके प्रारम्भमें शास्त्रीय चर्चाएं निबद्ध हैं। यों ही अलंकारोंके लक्षणोंका कथन नहीं किया है। इसमें सन्देह नहीं कि अजितसेन इस ग्रन्थकी रचनामें भोजके सरस्वतीकण्ठाभरणसे प्रभावित है। शब्दालंकारोंका विस्तृत विवेचन भी भोजके आधारपर किया गया प्रतीत होता है । महाकाव्योंके वर्ण्यविषयोंका निरूपण आचार्य अजितसेनकी प्रतिभाका फल [१०] Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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