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________________ अलंकारचिन्तामणि ददात्यवर्णः संप्रीतिमिवर्णो मुदमुद्वहेत् । कुर्यादुवर्णो द्रविणं ततः स्वरचतुष्टयम् ॥ अपख्यातिफलं दद्यादेचः सुखफलावहाः । दुविसर्गास्तु पदादी संभवन्ति नो । अर्थात् सामान्यतः अकारसे लेकर क्षकार पर्यन्त सभी वर्ण शुभ हैं; पर इनमें कुछ वर्ण अनिष्टफल देते हैं । काव्यादिमें प्रयुक्त अवर्ण प्रीतिप्रद; इवर्ण आनन्दप्रद उवर्ण धनप्रदः, ऋ, ऋ, लृ और लृ अपख्यातिप्रद और ए ऐ, ओ, औ सुखप्रद हैं । ङ, ञ, बिन्दु और विसर्गका पदादिमें अस्तित्वाभाव रहता है । क, ख, ग, घ लक्ष्मीप्रद, चकार अयशप्रद, छ प्रीति-सौख्यप्रद, जकार मित्रलाभकृत् झ भयप्रद, ट ठ दुःखप्रद, ड शोभाप्रद ढ अशोभाप्रद, ण भ्रमणप्रद त सुखदायक, थ युद्धप्रद, द-ध सुखप्रद, न प्रतापप्रद, प भयप्रद, फ सन्तोषप्रद, ब मृत्युप्रद, भ क्लेशकारक, म दाहकारक, य श्रीप्रद, रेफ दाहकृत्, ल-व व्यसनदायक, श सुखप्रद, ष खेददायक, स सुखप्रद ह दाहप्रद और क्षवर्ण सर्व समृद्धिदायक है । 2 इस प्रकार वर्ण और गण सम्बन्धी कविशिक्षा इस परिच्छेद में निरूपित है । कविशिक्षाको दृष्टिसे यह परिच्छेद उपादेय है । द्वितीय परिच्छेद में काव्यगत शब्दार्थका निश्चय किया गया है । काव्यहेतुओं में प्रतिभा - शक्ति, व्युत्पत्ति और अभ्यासका कथन किया गया है । रोचिक, वाचिक, आर्थ, शिल्पिक, मार्दवानुग, विवेकी और भूषणार्थी ये सात प्रकारके कवि बतलाये गये हैं । इसके पश्चात् चार प्रकारका अर्थ निरूपित है - (१) मुख्यार्थ (२) लक्ष्यार्थ (३) गौणार्थ और (४) व्यंग्यार्थं । इन सभी अर्थोंकी मीमांसा भी की है । इस परिच्छेद में ४२ पद्य हैं । ७२ तृतीय परिच्छेद रसभाव निश्चय है, इसमें १३० पद्य हैं । नौ स्थायीभाव, तेंतीस संचारी भाव, आठ सात्त्विक भाव एवं नव रसोंकी मीमांसा की गयी है। वियोगशृंगारके पूर्वानुराग, मान, प्रवास और करुण ये चार भेद बतलाये हैं । संयोगशृंगार के सन्दर्भमें प्रीति, शक्ति, संकल्प, जागरण आदि दस अवस्थाओंका निरूपण आया है । इस परिच्छेदमें नौ रसोंका विस्तारपूर्वक स्वरूप निरूपण आया है । चतुर्थ परिच्छेद नायकभेदनिश्चय नामक है । इनमें नायकके गुण और धीरोदात्त, धीरललित, धीरशान्त एवं धीरोद्धत भेदोंका स्वरूप अंकित है । इसी परिच्छेदमें नायिकाओंके भेद निरूपित हैं । १६३ पद्योंमें नायक-नायिकाओंके भेदोंका स्वरूप निर्धारित किया गया है । पञ्चम परिच्छेद 'दशगुणनिश्चय' है । इसमें सुकुमारत्व, औदार्य, श्लेष, कान्ति, प्रसन्नता, समाधि, ओज, माधुर्य, अर्थव्यक्ति और साम्यक इन दस गुणोंका स्वरूप निरूपित है । इसमें ३१ पद्य हैं । १. शृङ्गारार्णव चन्द्रिका, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, ११३६-३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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