SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना दर्पणमें रसात्मक वाक्यको काव्य लिखा है, पर कहीं-कहीं, शब्दचमत्कार युक्त भी काव्य देखा जाता है। अलंकारको काव्य-परिभाषामें समाविष्ट न करनेके कारण चमत्कारशून्यतापत्ति आ सकती है। अतः तुलनात्मक दृष्टि से विचार करनेपर अलंकारचिन्तामणिकी काव्य-परिभाषा अधिक व्यापक है। साहित्य दर्पणमें रसात्मक वाक्यको काव्य कहकर रसाभास, गुणीभूत व्यंग्य, काव्य-परिभाषामें कठिनाईसे ही समाविष्ट हो सकेंगे। साहित्य-दर्पणमें निरूपित अभिधा, लक्षणा और व्यंजनाका अलंकारचिन्तामणिमें उल्लेखमात्र आया है। रस, भाव, और नायक-नायिकादि भेदोंका निरूपण दोनों ही ग्रन्थोंमें समान रूपसे वर्णित है । ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्यके भेदोंका निरूपण साहित्यदर्पणमें विशिष्ट है । इसी प्रकार दृश्य-काव्यका विवेचन भी साहित्य-दर्पणमें विशिष्ट है। दोष-निरूपण और गुण-विवेचन प्रकरण अलंकारचिन्तामणिमें साहित्य दर्पणकी अपेक्षा कम समृद्ध नहीं है। साहित्यदर्पणमें जहाँ तीन गुणोंका निर्देश आया है वहां अलंकारचिन्तामणिमें चौबीस गुणोंकी मीमांसा की गयी है। शब्दालंकारोंका प्रकरण साहित्यदर्पणकी अपेक्षा अलंकारचिन्तामणिमें अधिक समृद्ध और विकसित है। चित्रालंकारमीमांसा तो अत्यन्त मौलिक है। अर्थालंकारोंके वर्गीकरणका आधार एवं अर्थालंकारोंके पारस्परिक भेद, अलंकारचिन्तामणिमें बहुत हो स्पष्ट रूपमें प्रतिपादित हैं। अलंकार प्रकरण साहित्यदर्पणसे कम उपादेय नहीं है। अर्थालंकार प्रायः दोनों ग्रन्थोंमें समान है और परिभाषाओंमें भी विशेष अन्तर नहीं है। गुण, रीति आदिको स्थापनाकी दृष्टिसे अलंकारचिन्तामणिको मौलिकता अक्षुण्ण है । ग्रन्थकार जिस विषयकी मीमांसा आरम्भ करता है, उस विषयकी सांगोपांग विवेचना करता है। अतः संक्षेपमें यही कहा जा सकता है कि साहित्य दर्पणमें ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य, दृश्य काव्य, अलंकारचिन्तामणिकी अपेक्षा विशिष्ट हैं । ___ महाकाव्यकी परिभाषामें साहित्यदर्पणकारने महाकाव्यके रूपगठन, और प्रणयनप्रक्रियापर विशेष विचार किया है। कथावस्तुका सानुबन्ध होना आवश्यक माना है । अलंकारचिन्तामणिमें प्रतिपाद्य विषयों की रूपरेखा तो दी गयी है, पर महाकाव्यके शिल्पपर विचार नहीं किया है। अतः साहित्यदर्पणकी महाकाव्य परिभाषा अधिक व्यापक है। विजयवर्गीकी शृंगारार्णवचन्द्रिका और अलंकारचिन्तामणि शृंगारार्णवचन्द्रिका दस परिच्छेदोंमें विभक्त है । प्रथम परिच्छेदमें वर्णगणफलका विचार किया है। इसमें गणनिर्माणको विधिके साथ गणोंका शुभाशुभ फलादेश भी प्रतिपादित है । इस परिच्छेद में ६३ पद्य हैं। वर्णोंका फलादेश बतलाते हुए लिखा है अकारादिक्षकारान्ता वर्णास्तेषु शुभावहाः । केचित् केचित् अनिष्टाख्यं वितरन्ति फलं नृणाम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy