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________________ प्रस्तावना तहाँ भिन्नता पायी जाती है। सरस्वतीकण्ठाभरणके तृतीय परिच्छेदमें चौबीस अर्थालंकारोंका निरूपण किया गया है। और चतुर्थ परिच्छेदमें चौबीस उभयालंकार वर्णित है। इस प्रकार अर्थालंकारके अड़तालीस भेदोंका निरूपण किया गया है । दोनों ग्रन्थों में अलंकारोंकी नामावली समान है तथा परिभाषाएँ भी प्रायः समान रूपमें निबद्ध हैं। अलंकारचिन्तामणिमें अलंकारोंकी संख्या बहत्तर है, अतः सरस्वतीकण्ठाभरणके उपभेदोंको मिला देनेपर कोई विशेष अन्तर दिखलाई नहीं पड़ता है। सरस्वतीकण्ठाभरणके पंचम परिच्छेदमें रस, भाव और विभावादिका विवेचन आया है। इस विवेचनमें दोनों ग्रन्थोंकी समान पद्धति है। तथा रस-भावोंका निरूपण भी तुल्य रूपमें हुआ है। अलंकारचिन्तामणिमें रसकी परिभाषा जैन दर्शनकी दृष्टिसे अंकित की गयी है। सरस्वतीकण्ठाभरणमें रसकी स्पष्ट रूपमें कहीं परिभाषा नहीं आयी है । भोजने शृंगार रसको सबसे प्रमुख रस माना है और इसीके सद्भावसे काव्यको सरस बतलाया है शृङ्गारी चेत्कविः काव्य जातं रसमयं जगत् । स एव चेदशृङ्गारी नीरसं सर्वमेव तत् ॥ शृंगारका विस्तारपूर्वक वर्णन सरस्वतीकण्ठाभरणमें आया है। अलंकारचिन्तामणिमें शृंगार रसका वर्णन तीन-चार पद्योंमें किया गया है तथा इसी सन्दर्भमें नायिकाओंके स्वकोया, परकीया, अनूढा, और वारांगना, ये चार भेद किये गये हैं। अन्य रसोंका निरूपण प्रायः समान रूपमें हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अजितसेनने अलंकारचिन्तामणिके प्रणयनमें सरस्वतीकण्ठाभरणसे सहायता अवश्य ग्रहण की है। विषयवस्तुको दृष्टिसे दोनों ग्रन्य तुल्य हैं। मम्मट का काव्यप्रकाश और अलंकारचिन्तामणि __ आचार्य मम्मटके काव्यप्रकाशको व्यापक प्रतिष्ठा प्राप्त है । इस ग्रन्थके प्रकाशके समक्ष पूर्ववर्ती सभी आचार्यों के ग्रन्थ निष्प्रभ हो गये हैं। काव्यप्रकाशमें १४२ कारिकाएँ दस उल्लासों में विभक्त हैं । प्रथम उल्लासमें काव्य प्रयोजन, काव्य हेतु, काव्यका सामान्य लक्षण और उसके तीन भेद, सोदाहरण वर्णित हैं। द्वितीय उल्लासमें शब्दके वाचक, लक्ष्य और व्यंग्य इन तीनों अर्थोंका तथा चौथे तात्पर्थिका स्पष्टीकरण किया गया है। इसके पश्चात् लक्षणा और व्यंजनाका विस्तारपूर्वक निरूपण है। तृतीयमें पूर्वोक्त, वाच्य आदि तीनों अर्थोकी व्यंजकताका निदर्शन है। चतुर्थमें ध्वनिके भेद, रस, स्थायीभाव, विभाव एवं व्यभिचारी भावोंकी स्पष्टता और ध्वनिभेदोंका निरूपण आया है । पंचममें काव्यके द्वितीय भेद गुणीभूत व्यंग्यका विषय और व्यंजनाका प्रतिपादन हुआ है । इस उल्लासमें महिमभट्टके ध्वनि विषयक मतकी मीमांसा भी की गयी है। षष्ठ उल्लासमें शब्दके भेद और अलंकारोंका विभाजन है। सप्तम दोष प्रकरण है। १. सरस्वती कण्ठाभरणम्. निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १६३४, ५॥१, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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