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________________ अलंकारचिन्तामणि अष्टम में गुण और अलंकारोंका स्वरूप एवं गुण और रीतिके विवेचनमें अन्य आचार्योके मतोंकी समालोचना है। नवममें शब्दालंकारके वक्रोक्ति आदि आठ विशेष भेद निरूपित हैं । दशममें उपमा आदि बासठ अलंकारोंके विशेष भेद निरूपित हैं । सम्भवतः मम्मटने अतद्गुण, मालादीपक, विनोक्ति, सामान्य और सम इन पांच अलंकारोंकी नवीन उद्भावना की है। __मम्मटकी विशेषता इस बातमें है कि उन्होंने रस, अलंकार, गुण और रीतिका काव्यमें क्या स्थान है और उन की क्या उपयोगिता है। इस पर विचार किया है। इन्होंने ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और अलंकारोंको उत्तम, मध्यम और अधम काव्यकी संज्ञासे निर्दिष्ट किया है। इन्होंने ध्वनिकारों द्वारा व्यंग्यार्थ और व्यंजनाके आधार पर प्रतिपादित ध्वनिसिद्धान्तका पुनर्मूल्यांकन उपस्थित किया। अलंकारचिन्तामणिकी काव्यप्रकाशके साथ तुलना करनेपर अवगत होता है कि काव्यप्रकाशमें निरूपित काव्यहेतु और काव्यस्वरूप अलंकारचिन्तामणिके तुल्य हैं। काव्यप्रकाशमें-"तद्दोषौ शब्दार्थी सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि' अर्थात् शब्दों और अर्थोंमें दोषाभाव, गुणोंका सद्भाव अवश्य हो, चाहे अलंकार कहीं-कहीं पर न भी हों। इस परिभाषामें रसका अस्तित्व भी स्वीकार किया गया है। अलंकारचिन्तामणिमें काव्यपरिभाषा उपर्युक्त काव्य परिभाषासे अधिक स्पष्ट आयी है। इसमें काव्यके सभी अंगोंका समावेश किया गया है । यह सत्य है कि काव्यप्रकाशमें प्रतिपादित काव्यहेतु अलंकारचिन्तामणिकी तुलनामें अधिक सुस्पष्ट और तर्कसंगत है। काव्यप्रकाश में लक्षणा और व्यंजनाका विस्तारपूर्वक विवेचन आया है, किन्तु अलंकारचिन्तामणिमें संक्षेपमें ही कथन किया है। तात्पर्थिकी मान्यता भी काव्यप्रकाशकी अलंकारचिन्तामणिमें उपलब्ध नहीं होती। सांकेतिक अर्थ एवं लक्ष्यार्थकी तर्कपूर्वक सिद्धिका भी अलंकारचिन्तामणिमें अभाव है। ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्यका विवेचन अलंकारचिन्तामणि में नहीं पाया जाता है, काव्यप्रकाशमें इसका विस्तार है। गुण और अलंकारके भेदका प्रतिपादन दोनों ग्रन्थों में आया है। गुणोंका जितना विस्तृत निरूपण अलंकारचिन्तामणिमें उपलब्ध है, उतना काव्यप्रकाशमें नहीं । काव्यप्रकाशके सप्तम उल्लासमें वर्णित दोष अलंकारचिन्तामणिके तुल्य है प ददोष, वाक्यदोष और अर्थदोषोंकी मीमांसा भी प्रायः तुल्य है। शब्दालंकारोंका जितना विस्तृत और स्पष्ट चित्रण अलंकारचिन्तामणिमें पाया जाता है, उतना काव्यप्रकाशमें नहीं। काव्यप्रकाशमें वक्रोक्ति, अनुप्रास, यमक, चित्र और पुनरुक्तवदाभासकी गणना शब्दालंकारके अन्तर्गत की गयी है । अलंकारचिन्तामणिमें शब्दालंकारके चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक ये चार भेद बतलाये गये हैं। १. काव्यप्रकाश प्रथम उल्लास, सूत्र १ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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