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________________ प्रस्तावना ४९ चतुर्थ परिच्छेदमें शब्दार्थसौन्दर्यके कारणको अलंकार कहा है । अलंकारचिन्तामणिमें बतलाया है कि चारुताका हेतु अलंकार है । लिखा है चारुत्वहेतुना येन वस्त्वलंक्रियतेऽङ्गवत् । । __ हारकाच्यादिभिः प्रोक्तः सोऽलंकारः कवीशिभिः ॥ अतएव स्पष्ट है कि अलंकारचिन्तामणिमें अलंकारके स्वरूपके साथ उनके वर्गीकरणका आधार भी निबद्ध किया गया है। काव्यादर्शके समान रसवत् और प्रेयस अलंकारकी गणना भी अलंकारचिन्तामणिमें की गयी है। दण्डीने समस्त अलंकारोंका मूल अतिशयोक्तिको माना है। पर अलंकारचिन्तामणिमें विभिन्न अलंकारोंके मूलभूत आधारका पृथक्-पृथक् विवेचन किया है । काव्यादर्शमें लिखा है अलंकारान्तराणामप्येकमाहुः परायणम् ।। वागीशमहितामुक्तिमिमामतिशयाह्वयाम् ॥ स्पष्ट है कि दण्डी अतिशयोक्तिको सम्पूर्ण अलंकार वर्गका एकमात्र परम आश्रयस्थान मानते हैं । अलंकारचिन्तामणिमें अतिशयोक्ति और उत्प्रेक्षामें अध्यवसायमूलक सादृश्य विषम, विशेषोक्ति, विभावना, चित्र, असंगति, अन्योन्य, व्याघात, तद्गुण, भाविक और विशेषालंकारोंमें विरोधमूलक सादृश्य, परिसंख्या, अर्थापत्ति, विकल्प, यथासंख्य और समुच्चय अलंकारोंमें वाक्यन्यायमूलत्व, उदात्त, विनोक्ति, स्वभावोक्ति, सम, समाधि, पर्याय, परिवृत्ति, प्रत्यनीक और तद्गुणमें लोक व्यवहारमूलत्व, अर्थान्तरन्यास, काव्यलिंग और अनुमानमें तर्कन्यायमूलत्व, दीपक, सार, कारणमाला, एकावली और मालामें शृंखलावैचित्र्यमूलत्व एवं मीलन, वक्रोक्ति, व्याजोक्ति अलंकारोंमें अपह्नवमूलत्व प्रतिपादित किया गया है। परिकर और समासोक्तिमें विशेषण-वैचित्र्यहेतुकता मानी गयी है। उपमा, अनन्वय, सन्देह, भ्रान्तिमान, अपह्नति और उल्लेखमें भेद-साधर्म्यहेतुकता तथा प्रतीप, प्रतिवस्तूपमा, सहोक्ति, निदर्शना, दृष्टान्त, दीपक और तुल्ययोगितामें अभेद, साधर्म्यहेतुकता स्वीकार की है। अलंकारोंका पारस्परिक भेद भी सहेतुक और स्पष्ट रूपमें वर्णित है । दण्डीने अलंकार और गुणका समावेश मार्गके अन्तर्गत किया है। इन्होंने गुण और अलंकारमें भेदका निरूपण नहीं किया है। अलंकारचिन्तामणिमें गुण और अलंकारमें परस्पर भेद माना है। अजितसेनने लिखा है-"गुणः संघटनाश्रित्या शब्दार्थाश्रित्यलंक्रिया"' अर्थात् संघटनाका आश्रय लेकर गुण काव्यकी शोभाको वृद्धिंगत करता है और शब्दार्थका आश्रय लेकर अलंकार । १. अलंकारचिन्तामणि. ज्ञानपीठ संस्करण, ४।१ । २. काव्यादर्श, काशो संस्करण, २।२७५ । ३ वही, २२२२०। ४. अलंकारचिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, चतुर्थ परिच्छेद, पृ. सं. ११३ से ११८ तक। ५. काव्यादश काशी संस्करण, ११४२, १११०१, २।३ । ६. अलंकारचिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, ४।२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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