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प्रस्तावना
भावनाके द्वारा सम्भाव्य है । यदि नैसर्गिकी प्रतिभाकी उपलब्धि न भी हो, तो भी उसमें काव्य और काव्यविद्या के श्रवण, मनन एवं निदध्यासनकी साधनासे कविताकी शक्ति प्राप्त की जा सकती है । नैसर्गिक प्रतिभाका स्थान उन्नत रहनेपर भी आहार्य प्रतिभाको भूला नहीं जा सकता है । शब्द और अर्थको सुन्दर बनानेके लिए काव्य उपकरणोंका प्रयोग आहार्य, प्रतिभा द्वारा भी किया जा सकता है । लोकरंजक तत्त्व जो कि किसी भी काव्यकृति के लिए परमावश्यक धर्म है, शास्त्रोंके अध्ययन-मनन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है । पर अजितसेनने अलंकारचिन्तामणि में प्रतिभाको काव्यनिर्माणके लिए आवश्यक हेतु माना है । उन्होंने लिखा है
व्युत्पत्त्यभ्याससंस्कार्या शब्दार्थघटनाघटा ।
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प्रज्ञा नवनवोल्लेखशालिनी प्रतिभास्य धीः ॥
अर्थात् काव्यरचनाके व्युत्पत्ति, प्रज्ञा और प्रतिभा ये तीन कारण हैं । निपुणता या अभ्यास प्रज्ञा के अन्तर्गत समाहित है । अतएव दण्डीकी अपेक्षा अजितसेन काव्यहेतुओं निरूपणकी दृष्टिसे अधिक स्पष्ट हैं । दण्डीकी मान्यताका अनुसरण परवर्ती किसी भी आचार्यने नहीं किया है ।
Post काव्यका लक्षण निम्न प्रकार लिखा हैशरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली
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अर्थात् इष्टार्थक अलंकारसहित और गुणयुक्त पदावली काव्य है । इस प्रकार | दण्डीने काव्य के शरीरका तो कथन किया है, पर काव्यकी आत्माको छोड़ दिया है । अतः यह काव्य परिभाषा अपूर्ण है । अजितसेनने अलंकारचिन्तामणिमें रसको काव्यकी आत्मा माना है । इन्होंने काव्य परिभाषामें काव्यशरीरके साथ काव्यकी आत्माका भी निरूपण किया है । अलंकारचिन्तामणिकारका अभिमत है—
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संजीवितभूतं तु प्रबन्धानां ब्रुवेऽधुना ।
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विभावादिचतुष्केण स्थायीभावः स्फुटो रसः ॥
९. अलंकार चिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, ११६ । २. काव्यादर्श, चौखम्बा संस्करण. ११० । ३. अलंकारचिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, ५८३ ।
अर्थात् काव्यकी आत्मा रस है । बड़े-बड़े प्रबन्धकाव्योंका आनन्द रससे ही प्राप्त होता है । रसके अभाव में कोई भी कृति काव्यका स्थान प्राप्त नहीं कर सकती है । स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों द्वारा रसकी निष्पत्ति होती है । जिस प्रकार परिपाकको प्राप्त हो जानेसे नवनीत ही घृतरूपमें परिणत हो जाता है उसी प्रकार स्थायीभाव ही विभाव, अनुभाव और संचारी भावके संयोगसे रसरूप में परिणत हो जाता है । अजितसेनके इस वर्णनसे स्पष्ट है कि वे काव्य में शब्दार्थशरीर के साथ रसरूप आत्माका अस्तित्व भी स्वीकार करते हैं ।
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