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________________ प्रस्तावना ४१ अनुप्रास, चित्र, और दुष्कर ये नौ भेद बतलाये हैं। इनमें छायाके चार उपभेद हैं१. लोकोक्ति, २. छेकोक्ति, ३. अर्भकोक्ति और ४. मत्तकोक्ति । उक्ति अलंकारके विधि, निषेध, नियम, अनियम, विकल्प और परिसंख्या ये छह उपभेद है। युक्तिके पदगत, पदार्थगत, वाच्यगत, वाच्यार्थगत, विषयगत और प्रकरणगत ये छह भेद बतलाये हैं। गुम्फनके शब्दगत, अर्थगत और शब्दार्थगत ये तीन भेद; वाकोवाक्यके, ऋजुवाकोवाक्य, और वक्र-वाकोवाक्य ये दो भेद; अनुप्रासके वर्णगत, पदगत और वाक्यगत ये तीन भेद; चित्रके प्रश्न, प्रहेलिका, गुप्तपद, च्युतपद, दत्तपद, समस्या और बन्ध ये सात भेद, दुष्करके विदर्भ और नियम ये दो भेद, बन्धके गोमूत्रिका, अर्द्धभ्रमण, सर्वतोभद्र, कमल, चक्र, चक्राब्ज, दण्ड और मुरुज ये आठ भेद एवं मुद्राका एक ही भेद है । इस प्रकार अग्निपुराणमें शब्दालंकारोंको चौंतीस या अड़तीस संख्या वर्णित है। __अलंकारचिन्तामणिके साथ अग्निपुराणके काव्यशास्त्रीय अंश की तुलना करनेपर अवगत होता है कि अग्निपुराणमें जो काव्यकी परिभाषा अंकित की गयी है उसकी अपेक्षा अलंकारचिन्तामणिको काव्यपरिभाषा अधिक व्यापक है। अग्निपुराणमें अलंकारगुणयुक्त और दोषोंसे मुक्त वाक्यको काव्य कहा है। इस परिभाषामें रस और रीतिको स्थान नहीं दिया गया है । महाकाव्यके वर्ण्य-विषयोंका निर्देश भी अलंकारचिन्तामणिका अग्निपुराणके काव्यशास्त्रीय भागकी अपेक्षा विशिष्ट है। अग्निपुराणमें महाकाव्यमें वर्ण्य नगर, समुद्र, पर्वत, ऋतु, चन्द्र, सूर्य, आश्रम, पादप, उद्यान, जलक्रीड़ा, मद्यपानादि उत्सव, दूती-वचन, कुलटाओंके विस्मयजनक चित्र आदिका वर्णन आवश्यक बताया है। पर इस सन्दर्भमें यह नहीं बताया गया है कि उक्त वस्तुओंका वर्णन किस प्रकार और किस रूपमें होना चाहिए। अलंकारचिन्तामणिमें केवल वर्ण्य-विषयोंकी तालिका ही नहीं दी गयी है अपितु इन विषयोंका वर्णन किस रूपसे होना चाहिए यह भी बतलाया गया है। इस प्रकार महाकाव्यका स्वरूप केवल बाह्य दृष्टि से ही वर्णित नहीं है अपितु उसकी आत्मापर भी प्रकाश डाला गया है। __ काव्य-हेतुओंका कथन भी स्पष्ट रूपसे अग्निपुराणके काव्यशास्त्रीय भागमें उपलब्ध नहीं होता। पर अलंकारचिन्तामणिमें काव्य-हेतुओंका स्पष्ट वर्णन आया है। अग्निपुराणके काव्यशास्त्रीय भागमें नाटक-सम्बन्धी तथ्य निरूपित हैं, पर अलंकारचिन्तामणिमें इनका अभाव है। रसकी परिभाषा, रसके भेद, उनके रूप-रंग, देवता आदिका जितना और जैसा वर्णन अलंकारचिन्तामणिमें उपलब्ध होता है वैसा अग्निपुराणके काव्यशास्त्रीय भागमें नहीं। १. संक्षेपाद्वाक्यमिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली । काव्यं स्फुरदलं कारं गुणवद्दोषवर्जितम् । यो निर्वेदश्च लोकश्च सिद्धमर्थादयोनिजम् ।।-अग्निपुराणका काव्यशास्त्रीय भाग, प्रथम अध्याय, (३३७ अध्याय ) पद्य ६, ७ । २. वही, १/३०॥ [६] Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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