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अलंकारचिन्तामणि इस प्रकार नाट्यशास्त्र और अलंकारचिन्तामणिकी तुलना करनेपर यह निष्कर्ष निकलता है कि नाट्यशास्त्र जहाँ नाटकके विधि-विधानको प्रमुखता देता है वहाँ अलंकारचिन्तामणिमें काव्य-प्रयोजन, काव्यहेतु, काव्यस्वरूप, काव्यके भेद-प्रभेद, अलंकार, शब्दशक्तियाँ, रीतियाँ, गुण-दोष आदिका सुस्पष्ट विवेचन आया है । अग्निपुराण और अलंकारचिन्तामणि
अग्निपुराणमें अध्याय ३३७-३४७ तक काव्यशास्त्रीय सामग्री संकलित है। ३३७वें अध्यायके प्रारम्भमें काव्यकी परिभाषा और उसका महत्त्व प्रतिपादित है । तदनन्तर गद्यकाव्यका लक्षण और उसके भेद-प्रभेदोंका सम्यक् निरूपण किया गया है। अन्तमें पद्यकाव्यके भेदोंका उल्लेख कर महाकाव्यका विस्तृत और अन्य भेदोंका संक्षिप्त स्वरूप दिया गया है।
तीन सौ अड़तीसवें अध्यायमें रूपकके भेदोंका उल्लेख कर नाटक प्रकार, अर्थप्रकृतियाँ, नाटकीय सन्धियाँ तथा तत्सम्बन्धी अन्य सामग्री उल्लिखित है। अध्यायके अन्तमें श्रेष्ठ नाटकके गुण एवं उसमें अपेक्षित देश-कालका भी निर्देश किया गया है।
३३९वें अध्यायमें रस, स्थायी भाव, आलम्बन तथा उद्दीपन विभावके निरूपणके पश्चात् नायक-नायिका भेदकी चर्चापर प्रकाश डाला गया है। ३४०वें अध्यायमें रीति तथा वृत्तिके लक्षणोंके अनन्तर उनके भेदोंपर प्रकाश डाला गया है। ३४१वें अध्यायमें नायिकाओंकी चेष्टाओंका विभाजन प्रस्तुत किया है, तत्पश्चात् नृत्यकलामें प्रयुक्त होनेवाले अंगोंकी चेष्टाओं तथा हाव-भावोंका परिगणन किया गया है।
__ ३४२वें अध्यायमें चतुर्विध अभिनयोंके निरूपणके उपरान्त शृंगारादि रसोंके लक्षण निर्दिष्ट किये गये हैं । तदनन्तर अलंकारका स्वरूप निर्धारित किया है और उसके भेदोंके उल्लेखके साथ-साथ शब्दालंकारके नौ भेदोंके लक्षण अंकित किये हैं। ३४३वें ३४४वें अध्यायमें अनुप्रास, यमक, चित्र और बन्ध अलंकारोंका भेदोपभेद सहित वर्णन किया है । अध्यायमें अर्थालंकारोंके आठ भेदोंका स्वरूप सहित वर्णन किया है । ३४५वें अध्यायमें उभयालंकारोंका वर्णन आया है। ३४६वें अध्यायमें गुणकी परिभाषा, उसका महत्त्व एवं भेद-प्रभेदों की चर्चा है। इस अध्यायमें सात शब्दगुण, छह अर्थगुण तथा छह शब्दार्थगुण बतलाये गये हैं।
३४७वें अध्यायमें काव्यदोषोंका निरूपण आया है। सर्वप्रथम वक्तृवाचकके भेदसे सात प्रकारके दोष बतलाये गये हैं । तत्पश्चात् उनके भेद-प्रभेदोंके लक्षण निरूपित कर दोषोंका परिहार दिया गया है । इस प्रकार अग्निपुराणमें काव्य, नाटक, रस, रीति, अभिनय, अलंकार, गुण-दोषका वर्णन आया है ।
_इसमें सन्देह नहीं कि अग्निपुराणोंमें यह काव्य विषय संग्रहीत है। इस संग्रहमें अलंकारोंके भेद-प्रभेद इतने सूक्ष्म, विस्तृत और वैज्ञानिक हैं कि पाठक आश्चर्यचकित रह जाता है। इस ग्रन्थमें शब्दालंकारके छाया, मुद्रा, उक्ति, युक्ति-गुम्फन, वाकोवाक्य,
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