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________________ प्रस्तावना किया जा सकता। इस प्रकार काव्यहेतओंका विचार अलंकारचिन्तामणिमें विशेषरूपसे किया गया है जो भरतमुनिके नाट्यशास्त्र में उपलब्ध नहीं है। अलंकारचिन्तामणिमें काव्यके भेद भी वर्णित हैं। जब कि भरतमुनिने अपने नाट्यशास्त्रमें श्रव्य और दृश्य इन दो ही भेदोंका निरूपण किया है। ध्वनि और गौणीभूत व्यंग्यका निरूपण दोनों ही ग्रन्थोंमें नहीं आया है । नवरसोंका कथन भरतमुनि ने विस्तारसे किया है, पर अलंकारचिन्तामणिमें संक्षेपमें नवरसोंका कथन सांगोपांग रूपमें किया गया है। रीतियोंके सम्बन्धमें भी अलंकारचिन्तामणिमें चर्चा आयी है । गुणसहित सुगठित शब्दावलीयुक्त सन्दर्भको रीति कहा है। यह रीतिकी परिभाषा बहुत ही स्पष्ट और काव्योपयोगी है। इसमें रीतिका आधार गुणोंको स्वीकार किया गया है। रीतियोंमें वैदर्भी, गौडी और पांचालीका सोदाहरण कथन आया है। इस ग्रन्थमें काव्यसामग्रीका भी निरूपण आया है। इस सामग्रीके अन्तर्गत रीतियाँ, काव्यपाक, अलंकार, वृत्तियाँ, रस आदिका निरूपण हुआ है। वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य इन तीनों प्रकारके अर्थोंका सोदाहरण निरूपण है। लक्षणा और व्यंजनाके भेदप्रभेदोंका भी कथन आया है। शब्दशक्तिमूलक व्यंजना और अर्थशक्तिमूलक व्यंजनाके स्वरूप और उदाहरण भी आये हैं । रसोंकी स्थितिका बोध करानेवाली तथा रचनाओंमें विद्यमान वृत्तियाँ दोनों ग्रन्थोंमें समान रूपसे वर्णित हैं। दोषोंका कथन नाट्यशास्त्रकी अपेक्षा अलंकारचिन्तामणिमें विस्तारपूर्वक आया है। इस ग्रन्थ में सत्रह पददोष, चौबीस वाक्यदोष, अठारह अर्थदोष वर्णित हैं। जहाँ भरतमुनिने केवल दस दोषोंका कथन किया है वहाँ अलंकारचिन्तामणिमें लगभग पैंसठ दोषोंका निरूपण हुआ है। भरतमुनिने दस गुणोंका वर्णन किया है। पर अलंकारचिन्तामणिमें चौबीस गुणोंका सोदाहरण प्रतिपादन किया गया है । नाट्यशास्त्रमें वर्णित श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पद-सौकुमार्य, अर्थ-व्यक्ति, उदारता और कान्ति, ये दस गुण अलंकारचिन्तामणिके चौबीस गुणोंमें समाविष्ट हैं। गुणोंकी परिभाषाएँ दोनों ही ग्रन्थोंमें आयी हैं। नायक-नायिकाके भेद एवं स्वरूप भी प्रायः दोनों ग्रन्थोंमें समान हैं। स्त्रियोंके सात्त्विक भाव और सत्त्वज अलंकार भी प्रायः दोनों ग्रन्थोंमें तुल्य हैं। नाट्यशास्त्रमें नाटक-सम्बन्धी नियम एवं छन्दश्शास्त्र-सम्बन्धी विधिविधान अलंकारचिन्तामणिकी अपेक्षा विशिष्ट हैं। अलंकारोंके स्वरूप और उदाहरणकी दृष्टिसे अलंकारचिन्तामणि नाट्यशास्त्रसे बहुत आगे है। शब्दालंकारोंकी तो अनूठी मीमांसा आयी है । अर्थालंकारोंमें बहत्तर अलंकारोंकी परिभाषाएँ अंकित की गयी हैं । अलंकारचिन्तामणिके रसप्रकरणका स्रोत यह नाट्यशास्त्र है, इसीके आधारपर रसकी मीमांसा की गयी प्रतीत होती है। १. अलंकारचिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, ५॥१३४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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