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________________ -३५० ] पञ्चमः परिच्छेदः अत्यन्तसुवयःकामा लीनेव प्रियवक्षसि । प्रगल्भा सुरतारम्भेऽ'प्यस्वाधीनमना यथा ।।३४७॥ गाढाश्लेषप्रलीनस्तनबिसजयुगोद्भिन्नैरागोद्गमाढया सान्द्रस्नेहातिरेकप्रगलितविरणत् काञ्चिसुश्रोणिवस्त्रा । मा मालं मेति दैन्यप्रलपितवदना कि मता कि सुषुप्ता काये कि सुप्रविष्टा मनसि समुषिता वेति सा रंरमीति ॥३४८।। मध्या त्रेधा मता धीरा धीराधीरा तथेतरा। सागसं भेदयेद्धीरा सोत्प्रासानेजुवाग्यथा ॥३४९।। केतक्या नवकण्टकैर्गलमुखं व्यापारितं हन्त हा प्रस्वेदक्लदमातपेन लपनं वातेन कीर्णाः कचाः । सुरतके लिए नायकके विशेष अनुरोध करनेपर हे सखि, मैने सैकड़ों प्रकारको शपथ करायी और उसके बाद मुझे होश न रहा, इस प्रकार कोई नायिका अपनी सखीसे अपने नायकके वृत्तान्तको कह रही है ।।३४६।। प्रगल्माका स्वरूप ____अत्यन्त प्रस्फुटित काम अवस्थावालो, प्रियतमके वक्षःस्थलसे चिपटी हुई, सुरतके प्रारम्भ में परतन्त्र चित्तवाली नायिकाको प्रगल्भा नायिका कहते हैं ।।३४७॥ उदाहरण गाढ आलिङ्गनके कारण प्रियतमके वक्ष में विलीन, कुचोंमें कमल सूत्रसे उत्पन्न रोमांचसे अत्यधिक रागको सूचित करनेवाली तथा अत्यन्त प्रेमकी अधिकतासे गिरी हुई और शब्द करती हुई रशना-कांचीवाली तथा स्खलित हुए कमरके वस्त्रवाली कोई प्रगल्भा नहीं, नहीं, बस करो' इस प्रकार दीनतासे युक्त वचन बोलती हुई 'मर गयी, सो गयी, शरीर में घुस गयो, अथवा मन में छिपकर रह गयी' इस प्रकार कथन करती हुई रमण की ।।३४८॥ मध्या नायिकाके भेद-- ___मध्या नायिकाके तीन भेद हैं-(१) धोरा (२) अघोरा और ( ३ ) धीराधीरा । सरल बोलीवालो धीरा नायिका अपराधी प्रियतमको आलंकारिक भाषामें कष्ट देती है ॥३४९॥ धोरा मध्याका उदाहरण खेद है कि केतकीके नवीन कण्टकसे तुम्हारा गला और मुख फट गया है । धूपके कारण मुख पसीने से आर्द्र हो गया है । केश पवनके कारण अस्त-व्यस्त हो गये हैं। १. खप्रतौ अपि पदं नास्ति । २. रोमोद्गमाढ्या-ख । ३. किं नु सुप्ता-ख । ४. खेदयेधीराः-ख । ५. -नृजुवान् यथा-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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