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________________ ३१८ अलंकारचिन्तामणिः [५।३५०यातायातपरिश्रमाद् वपुरिदं क्लान्तं तवैवं त्वयि । तावत्तिष्ठ च तिष्ठ मा विश गृहं धूल्या प्ररक्ताम्बका ॥३५०।। धीराधोरा मता साश्रुवक्त्रसोत्प्रासवाग्यथा। दयिते कि नाथ कान्ते जहिहि मयि रुषं रोषतः किं कृतं ते मम चेतो दन्दहीमि प्रियवठर कृतं किं त्वयागो मयैव । यदि चैवं रोदिषि त्वं किमिति रुदितहत्त्वं'न को मे प्रियोऽहं नहि दग्धा मे मनस्त्वं रुदितमकृतसा त्वं चमूरीशितेति ॥३५१॥ गलदश्रुप्रवाहेण कठोरवचसा क्रुधा। खेदयेत्सापराधं या स्यादधीरा च सा यथा ॥३५॥ दन्तोत्पीडगताधरामृतरसं स्वेदच्युतास्यति गाढाश्लिष्टभुजोरुपाशयुगलव्याबन्धनाशक्तिकम् । नेत्रैरीक्षितुमक्षमा वयममुं त्वं मुञ्च मुञ्चालि भोः किं तेनाद्रियतां च मा खलवरो यायातु यायातु सः ॥३५३॥ आने-जानेके परिश्रमसे यह शरीर थक गया है; अतएव ठहरो-ठहरो घरमें मत घुसो, धूलिसे रँगी हुई आँखवाली किसी मध्या धीराने कहा ॥३५०॥ अश्रयुक्त मुखवाली तथा सव्यङ्गय वचनवाली न:यिका घोराधीरा मानो गयी है। धीराधीराका उदाहरण हे प्रिये ! क्या कहते हो स्वामिन्, प्रिये मुझपर क्रोध मत करो। क्रोधसे मैंने क्या तुम्हारा किया ? मेरे चित्तको बार-बार जलाती हो । हे कठोर प्रेमी, तूने क्या किया है ? अपराध तो मैंने ही किया है। तब इस प्रकार रोती क्यों हो? मेरी रुलाई रोकनेवाले तुम कौन हो ? मैं तुम्हारा प्रियतम हूँ। तुम मेरे मनको जलानेवाले नहीं हो, इसके बाद वह रो पड़ी कि तुम सेनाके स्वामी हो । शासक हो ॥३५१।। अधीराका उदाहरण गिरते हुए आसुओंको धारासे तथा कर्कश वचनसे जो क्रुद्धा नायिका अपराधी प्रियतमको कष्ट पहुँचावे, उसे अधोरा कहते हैं ॥३५२।। मध्या अधीराका उदाहरण परनायिका कृत दन्तक्षतके कारण नष्ट अधरामृत रसवाले, रतिजन्य पसनासे नष्ट मुख कान्तिवाले और गाढ आलिङ्गनके कारण, नष्ट भुजाकी शक्तिवाले, इसको हम नेत्रोंसे देखना नहीं चाहतीं। हे सखि ! इसे छोड़ो-छोड़ो, इससे क्या लाभ ? इसका आदर मत करो, यह महादुष्ट चला जाये-चला जाये ।।३५३।। १. नु मे कोपे प्रियोऽहम् -ख । २. सान्त्वं चमूरोशितेति-ख । ३. यथा इत्यस्यानन्तरं खप्रती वठरस्यान्मातृमुख इत्यभिधानात् कर्णाटभाषायाम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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